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महाकुंभ 2025: मानव धर्म शिविर में रोजाना एक लाख श्रद्धालुओं को मिलता है निशुल्क भोजन

प्रयागराज में महाकुंभ का भव्य आयोजन चल रहा है. लाखों श्रद्धालु संगम नगरी में आकर आस्था में डूबे हुए हैं. लोग यहां भगवान की भक्ति में लीन हैं. इस भव्य और विशाल आयोजन में आने वाले लोगों की सुविधाओं का खास ख्याल रखा जा रहा है. साधु-संतों के टेंटों में बड़ी संख्या में भक्त ठहर रहे हैं. वहीं, मानव धर्म शिविर रोजाना लाखों भक्तों को भोजन करा रहा है. इसके लिए शिविर में आधुनिक रसोई बनाई गई है.

महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मानव धर्म शिविर में रोजाना खाना बनाया जा रहा है. यहां रोजाना एक लाख लोगों के लिए भोजन बनाया जा रहा है. उन्हें बेहतर और शुद्ध खाना दिया जा रहा है. इसके लिए शिविर में हजारों लोग ओनी सेवाएं दे रहे हैं. शिविर में रोटी, चावल और सब्जी बनाने की मशीनें लगी हैं. खाना बनाने वाले और उसे परोसने वाले अलग-अलग लोग हैं.

एक घंटे में बनती हैं 2 हजार रोटियां

मानव धर्म शिविर के एक सदस्य ने मीडिया को बताया कि शिविर में हर रोज एक लाख से अधिक लोगों के लिए खाना बनाया जाता है. इतनी बड़ी क्वांटिटी में बनने वाले खाने के लिए मशीनों की मदद ली जाती है. शिविर में आधुनिक रसोई बनी हुई है. उन्होंने बताया कि रसोई में बड़ी-बड़ी मशीनें लगी हुई हैं. रोटी बनाने वाली मशीन 1 घंटे में 2 हजार रोटियां बनाती हैं. इसी मशीन से पूड़ी भी बनाई जाती हैं. काटने और उसे बनाने की अलग-अलग मशीने हैं. चावल तैयार करने के लिए भी मशीन मौजूद हैं.

500 लोग बनाते हैं खाना, 2-3 हजार परोसते

शिविर के सदस्य ने बताया कि रसोई में भोजन बनाने के लिए 500 लोग रहते हैं. यहां आने वाले श्रद्धालुओं को भोजन परोसने के लिए 2 से 3 हजार लोग मौजूद हैं. इसके अलावा शिविर में अन्य सुविधाएं भी दी गईं हैं. यहां 2 हजार से जयादा शौचालय बनाए गए गईं. पानी और टेंट की सुविधाएं भी हैं. महाकुंभ का आगाज 13 जनवरी को हुआ अता जो 26 फरवरी तक चलेगा. इस आयोजन में 45 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है. आंकड़ों के मुताबिक, महाकुंभ में 14 दिनों के अंतराल में करीब 10 करोड़ से जयादा श्रद्धालु आ चुके हैं.

छत्तीसगढ़ में बड़ा मिलावट कांड: गुड़ में पत्थर का चूरा मिलाने वाली फैक्ट्री का पर्दाफाश

छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के कवर्धा में एक गुड़ फैक्ट्री में लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा था. यहां गुड़ में पत्थर का चूरा मिलाकर गुड़ तैयार किया जा रहा था. फैक्ट्री से कई क्विंटल पत्थर का चूरा बरामद किया गया है. इस पत्थर के चूरे की मिलावट गुड़ को वजनदार बनाने के लिए की जा रही थी. अब इस फैक्ट्री का पर्दाफाश हुआ, जहां 620 बोरियों में ये पत्थर का चूरा भरा हुआ रखा था, जिसे बरामद किया गया है.

ये फैक्ट्री कबीरधाम के कवर्धा के कुंडा तहसील क्षेत्र के जंगलपुर गांव में चल रही थी, जिसका संचालन मां दुर्गा गुड़ उद्योग नाम से हो रहा था. उद्योग संचालक ने ये पत्थर चूरा उत्तर प्रदेश से मंगाया था. उन्होंने सीमेंट की बोरियों में भरकर ये चूरा मंगाया था. इस उद्योग का पर्दाफाश शुक्रवार और शनिवार को तब हुआ, जब फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट ने आधी रात को 2 बजे छापेमारी की. इस दौरान 310 क्विंटल स्टोन पाउडर यानी पत्थर का चूरा बरामद किया गया, जिसे 620 बोरियों में रखा हुआ था.

23 क्विंटल मिलावटी गुड़ भी बरामद

यही नहीं मां दुर्गा इंडस्ट्री से 23 क्विंटल मिलावटी गुड़ भी बरामद किया गया है, जो स्टोन पाउडर बरामद हुआ है. उसकी कीमत 2 लाख 83 हजार 700 रुपये बताई जा रही है. फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट ने मां दुर्गा इंडस्ट्री के मालिक हलधर चंद्रवंशी से एक बॉन्ड साइन कराया. इसके बाद स्टोन पाउडर उनके सुपुर्द किया गया. मिलावटी गुड़ और स्टोन पाउडर के सैंपल ले लिए गए हैं, जिन्हें जांच के लिए रायपुर की लैब में भेजा जाएगा.

स्टोन पाउडर से हो सकती है मौत

एक्सपर्ट्स के मुताबिक स्टोन पाउडर इतना खतरनाक होता है कि 250 ग्राम स्टोन पाउडर से किसी भी व्यक्ति की मौत हो सकती है, लेकिन मां दुर्गा गुड़ उद्योग मालिक गुड़ का वजन बढ़ाकर ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में स्टोन पाउडर की मिलावट कर रहा था. 310 क्विंटल स्टोन पाउडर इतना ज्यादा है कि इससे लाखों लोगों की किडनी और लीवर खराब हो सकता है.

यूट्यूब के 5 नए धमाकेदार फीचर्स: बिना इंटरनेट के चलेंगे शॉर्ट्स, हाई क्वालिटी साउंड और बहुत कुछ!

यूट्यूब, दुनिया का सबसे बड़ा वीडियो प्लेटफॉर्म, समय-समय पर अपने यूजर्स के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए नए फीचर्स रोलआउट करता रहता है. हाल ही में, यूट्यूब ने प्रीमियम यूजर्स के लिए 5 नए और शानदार फीचर्स पेश किए हैं, जो न केवल मनोरंजन को आसान बनाएंगे बल्कि टेक्नोलॉजी के बेहतर उपयोग का अनुभव भी देंगे. आइए इन फीचर्स पर नजर डालते हैं.

हाई क्वालिटी साउंड

यूट्यूब ने प्रीमियम यूजर्स के लिए 256kbps बिटरेट पर ऑडियो सपोर्ट का फीचर जोड़ा है. इससे म्यूजिक और वीडियो का साउंड आउटपुट पहले से कहीं बेहतर हो गया है. यूट्यूब म्यूजिक पर यह सुविधा पहले से मौजूद थी, लेकिन अब इसे यूट्यूब वीडियो पर भी उपलब्ध कराया गया है.

शॉर्ट्स के लिए PiP मोड

अब यूट्यूब शॉर्ट्स को “पिक्चर इन पिक्चर” मोड पर देखा जा सकता है. यह फीचर आपको मल्टी-टास्किंग की सुविधा देता है. उदाहरण के लिए, आप किसी दूसरे ऐप पर काम करते हुए शॉर्ट्स का आनंद ले सकते हैं.

ऑफलाइन शॉर्ट्स

iOS यूजर्स के लिए यूट्यूब ने ऑटोमैटिक डाउनलोड फीचर पेश किया है. इसके जरिए आप बिना इंटरनेट के भी शॉर्ट्स देख सकते हैं. यह फीचर खासतौर पर उन लोगों के लिए उपयोगी है, जो इंटरनेट की कमी के कारण कंटेंट देखने में असमर्थ रहते हैं.

Ask Music फीचर

यूट्यूब म्यूजिक में “Ask Music” फीचर पेश किया गया है. इस फीचर की मदद से आप किसी खास म्यूजिक को केवल एक वॉयस कमांड से खोज और प्ले कर सकते हैं.

Ask Chat फीचर

iPhone यूजर्स के लिए “Ask Chat” बटन जोड़ा गया है. इसकी मदद से आप वीडियो में दिख रहे कंटेंट से जुड़े सवाल पूछ सकते हैं. ये नए फीचर्स यूट्यूब प्रीमियम को और अधिक आकर्षक और उपयोगी बनाते हैं. हाई क्वालिटी ऑडियो, PiP मोड, और ऑफलाइन शॉर्ट्स जैसी सुविधाएं न केवल मनोरंजन को आसान बनाती हैं, बल्कि यूजर्स को बेहतर तकनीकी अनुभव भी प्रदान करती हैं. यूट्यूब का यह कदम इसे अन्य प्लेटफॉर्म्स से अलग और यूजर्स के अनुकूल बनाता है.

मुंबई के डोंबिवली में चमत्कारिक घटना: 3 मंजिल से गिरा 2 साल का बच्चा, खरोंच तक नहीं आई

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के डोंबिवली में एक चमत्कारिक घटना देखने को मिली है. इस घटना में एक दो साल का बच्चा तीसरी मंजिल से नीचे गिर गया. इतने में एक व्यक्ति ने उसे लपकने की कोशिश की. बावजूद इसके वह फिसलकर नीचे गिर गया. इस घटना में उसे खरोंच तक नहीं आई है. इस घटना का सीसीटीवी फुटेज सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है. इस वीडियो को देखकर हर कोई हैरान है.

मामला डोंबिवली के देवीचापाड़ा इलाके में रविवार की सुबह का है. जानकारी के मुताबिक देवीचापाड़ा स्थित एक 13 मंजिली इमारत के तीसरे मंजिल पर एक परिवार रहता है. रविवार की सुबह इस परिवार का दो वर्षीय बच्चा बालकनी में खेलते खेलते अचानक से नीचे गिर गया. संयोग से इसी इमारत में रहने वाले भावेश म्हात्रे नाम के युवक ने इस बच्चे को गिरते हुए देखा तो उसने अपनी जान की परवाह किए उसे बचाने के लिए छलांग लगा दी.

बच्चे को खरोंच तक नहीं आई

भावेश ने बच्चे को पकड़ तो लिया, लेकिन संभलते संभलते यह बच्चा फिसल कर जमीन पर चला गया. इतने में भावेश ने उसके नीचे अपना पैर लगा दिया. इससे बच्चा जमीन से टकराने से बच गया. इस घटना में बच्चों को कोई खरोंच तक नहीं आई है. यह पूरी घटना इमारत में लगे कई सीसीटीवी कैमरों में कैद हुई है. फिलहाल इन्हीं में से एक सीसीटीवी कैमरे की फुटेज सोशल मीडिया में वायरल हो रही है.

भावेश की बहादुरी को सलाम कर रहे लोग

सोशल मीडिया में वायरल हो रहे इस वीडियो को देखकर हर कोई यह कहने लगा है कि यह भगवान का चमत्कार है. लोग इसे देखकर हैरान है कि करीब 35 फुट की ऊंचाई से गिरने के बाद भी यह बच्चा सुरक्षित है. वहीं लोग भावेश म्हात्रे की बहादुरी और इंसानियत को सलाम कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि भावेश ने एक जिंदगी बचाने के लिए जिस साहस का प्रदर्शन किया है, वह लोगों के लिए एक संदेश है

उत्तराखंड: पूर्व विधायक और विधायक के बीच झगड़ा, फायरिंग और तोड़फोड़ की घटना से इलाके में तनाव

उत्तराखंड के रुड़की में पूर्व विधायक कुंवर प्रवण सिंह चैंपियन और निर्दलीय विधायक उमेश कुमार के बीच का विवाद सड़क पर आ गया है. शनिवार को इन दोनों नेताओं के बीच झगड़ा हुआ था. इसी क्रम में रविवार को चैंपियन और उनके समर्थकों ने विधायक उमेश कुमार के कार्यालय पर हमला कर दिया. इस दौरान कार्यालय में तोड़फोड़ करते हुए वहां मौजूद लोगों के साथ मारपीट भी की.

इस दौरान खुद पूर्व विधायक चैंपयन हाथों में बंदूक लेकर विधायक उमेश कुमार को गालियां बकते नजर आ रहे हैं. इस घटना का एक वीडियो भी सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है. सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है. जानकारी के मुताबिक शनिवार को दोनों नेताओं के बीच कुछ कहासुनी हुई थी. इसके बाद देर रात विधायक उमेश कुमार अपने समर्थकों के साथ चैंपियन के कैंप कार्यालय लंढौरा महल पहुंच गए थे. उन्होंने चैंपियन को ललकारा था. यहां तक कि सोशल मीडिया पर भी उन्होंने बयान दिए थे.

जांच में जुटी पुलिस

इसके जवाब में चैंपियन ने रविवार को उनके कार्यालय पहुंच कर बवाल काटा है.बताया जा रहा है कि इस घटना में विधायक उमेश कुमार के तीन समर्थकों को चोटें आईं हैं. सूचना मिलने पर मौके पर पहुंचे सीओ रुड़की नरेंद्र पंत ने मामले की जांच पड़ताल की. हालांकि उनके पहुंचने से पहले पूर्व विधायक और उनके समर्थक वहां से जा चुके थे. सीओ रुड़की के मुताबिक मौके पर तनाव को देखते हुए पर्याप्त संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई है.

हाथ में बंदूक लेकर पहुंचे पूर्व विधायक

उन्होंने बताया कि पूर्व विधायक द्वारा फायरिंग की शिकायत मिली है, इस शिकायत की भी जांच कराई जा रही है. उधर, घटना के बाद पूर्व विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन ने अपने फेसबुक एकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट किया है. इस वीडियो में वह हाथों में बंदूक लेकर अपने समर्थकों के साथ विधायक उमेश शर्मा के कार्यालय की ओर जाते हुए दिख रहे हैं.

अपनी मांगों पर अड़े हैं किसान, गणतंत्र दिवस पर पंजाब में कई जगह निकाला ट्रैक्टर मार्च

गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों ने केंद्र सरकार के खिलाफ पूरे पंजाब में कई जगहों पर ट्रैक्टर मार्च निकाले और विरोध प्रदर्शन किया. किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार किसानों से वादा करने के बावजूद उनकी मांगों को मान नहीं रही है और इसी के चलते अपनी मांगों के लिए वो आज ट्रैक्टर लेकर सड़कों पर उतरे हैं.

पंजाब के जालंधर के भोगपुर में किसान संगठनों के द्वारा एक बड़ा ट्रैक्टर मार्च निकाला गया. इस दौरान बड़ी संख्या में किसान अपने ट्रैक्टरों को लेकर पठानकोट-जालंधर हाईवे पर इकट्ठा हुए और एक बड़ा प्रोटेस्ट मार्च ट्रैक्टरों के साथ निकाला गया. किसान मजदूर मोर्चा और संयुक्त किसान मोर्चा ने संयुक्त रूप से 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकालने का ऐलान किया था.

डल्लेवाल के अनशन का आज 62वां दिन

खनौरी बॉर्डर पर अनशन कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के अनशन का आज 62वां दिन है. ग्लूकोज चढ़ाने और मेडिकल ट्रीटमेंट लेने के बाद उनकी सेहत में सुधार हो रहा है. एसकेएम ने अपनी राष्ट्रीय समन्वय समिति की बैठक में संघर्ष को तेज करने का फैसला किया. किसान संगठन एनपीएफएएम को वापस लेने, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी देने और ऋण माफी की मांग कर रहे हैं.

किन मांगों पर अड़े हैं किसान?

MSP पर खरीद की गारंटी का कानून.

स्वामीनाथन आयोग के हिसाब से कीमत.

भूमि अधिग्रहण कानून 2013 लागू हो.

आंदोलन में लगे मुकदमे वापस लिए जाएं.

किसानों का कर्जा माफ हो, पेंशन दी जाए.

फसल बीमा योजना का प्रीमियम सरकार दे.

मारे गए किसानों के परिजनों को नौकरी.

लखीमपुर कांड के दोषियों को सजा मिले.

मनरेगा में 200 दिन काम, 700 रु. मजदूरी.

नकली बीज-खाद पर सख्त कानून.

मसालों की खरीद पर आयोग का गठन.

भूमिहीन किसानों के बच्चों को रोजगार.

मुक्त व्यापार समझौते पर रोक लगाई जाए.

कमल का बटन दबाते ही दिल्ली में दी जा रहीं सारी सुविधाएं बंद हो जाएंगी: केजरीवाल

दिल्ली चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे सियासी बयानबाजी तेज हो रही है. तमाम राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप- प्रत्यारोप लगा रहे हैं. रविवार को दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार और बीजेपी पर जमकर हमला बोला है. उन्होंने कहा कि बीते 5 साल में बीजेपी की सरकार ने 400-500 लोगों का 10 लाख करोड़ रुपए कर्ज माफ किया है. केजरीवाल ने कहा कि कमल का बटन दबाया तो दिल्ली में मिल रही ये सारी सुविधाएं बंद हो जाएंगी.

केजरीवाल ने कहा कि एक व्यक्ति का 46 हजार करोड़ रुपए का कर्जा माफ कर दिया. उन्होंने कहा कि कुछ दिनों पहले जानकारी मिली थी कि 6500 करोड़ का कर्ज लेने वाले व्यक्ति को 1500 करोड़ रुपए में फ्री कर दिया. उसका 5 हजार करोड़ कर्ज माफ किया.

कमल का बटन दबाते ही सुविधाएं बंद- केजरीवाल

AAP के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि एक तरफ बीजेपी मॉडल है, जहां आपका पैसा अरबपति दोस्तों को ऋण के रूप में दिया जाता है, और 2-3 साल के बाद माफ कर दिया जाता है. दूसरी तरफ आम आदमी है, पार्टी मॉडल जिसमें गरीबों को 24 घंटे बिजली, 24 घंटे मुफ्त पानी, बेहतरीन और अच्छा इलाज शामिल है.

यह आम आदमी पार्टी का कल्याणकारी मॉडल है. जिसे भारतीय जनता पार्टी ने अलग-अलग तरीकों से स्पष्ट किया है कि अगर उनकी सरकार बनी, कमल का बटन दबाया तो दिल्ली में मिल रही ये सारी सुविधाएं बंद हो जाएंगी, क्योंकि ये उनके मॉडल के खिलाफ है.

दिल्ली नहीं देश बचाने का चुनाव- केजरीवाल

इस दौरान अरविंद केजरीवाल ने कहा कि कुछ दिन पहले मैंने कहा था कि ये चुनाव दिल्ली को बचाने का चुनाव है, लेकिन अब मुझे लगता है कि ये चुनाव देश को बचाने का चुनाव है. ये चुनाव केवल और आप और बीजेपी के बीच का चुनाव नहीं बल्कि दो विचारधाराओं के बीच का चुनाव है.

केजरीवाल ने कहा कि इस देश का भिखारी टैक्स देता है, मिडिल क्लास टैक्स देता है, जीएसटी जनता पर टैक्स का बोझ है. इस चुनाव में जनता को तय करना है कि देश और राज्य का सरकारी खजाना कहां पर और कैसे खर्च होना चाहिए. जनता टैक्स देती है. ये सारा पैसा जो सरकारें इकट्ठा करती हैं, ये पैसा कैसे खर्च होना चाहिए, ये चुनाव इसे तय करने का चुनाव है.

यूपी एसटीएफ ने कछुए की तस्करी करने वाले दो बदमाशों को किया गिरफ्तार, बरामद हुए 390 कछुए

उत्तर प्रदेश पुलिस की एसटीएफ यूनिट ने अंतर-राज्य स्तर पर प्रतिबंधित के कछुए की तस्करी करने वाले दो लोगों को गिरफ्तार किया. पुलिस ने आरोपियों के पास से 390 कछुए बरामद किए हैं. पकड़े गए आरोपियों की पहचान उत्तम दास और सलीम के तौर पर हुई है. जिन्हें पुलिस ने मैनपुरी के जैन इंटर कॉलेज करहल से गिरफ्तार किया है. पुलिस की जांच में सामने आया है कि पकड़े गए दोनों आरोपी उत्तराखंड के रहने वाले हैं.

कई दिनों से उत्तर प्रदेश की एसटीएफ को प्रतिबंधित कछुए की तस्करी करने वाले तस्करों के सक्रिय होने की सूचनाएं मिल रही थी. जिसको देखते हुए एसटीएफ ने कई टीमों को लगा रखा था और इसी क्रम में एसटीएफ फील्ड इकाई कानपुर ने टीम गठित कर तस्करों को तलाश शुरू कर दी थी. जांच के दौरान एसटीएफ को यह सूचना प्राप्त हुई कि कुछ तस्कर प्रतिबंधित प्रजाति के कछुए को मैनपुरी के विभिन्न स्थान से इकट्ठा करके टाटा सफारी गाड़ी से एटा बरेली होते हुए उत्तराखंड ले जा रहे हैं.

390 जिंदा कछुए बरामद

मुखबिर की सूचना पर तत्काल एसटीएफ एक्टिव हो गई और कार्रवाई करते हुए सब इंस्पेक्टर विनोद कुमार के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी गई. सूचना पर वन क्षेत्र अधिकारी रेंज मैनपुरी से बात करते हुए पुलिस ने तस्करों को रविवार सुबह साढ़े चार के आसपास मैनपुरी के जैन इंटर कॉलेज करहल से दो लोगों को गिरफ्तार किया. पकड़े गए आरोपियों के पास से पुलिस को 11 बोरियों में 390 जिंदा कछुए बरामद हुए हैं.

उत्तराखंड ले जा रहे थे कछुए

पुलिस की पूछताछ में तस्करों ने बताया कि वह पिछले काफी समय कछुओं की तस्करी कर रहे हैं. तस्कर मैनपुरी के अशोक कुमार से कछुए लेकर शक्ति फार्म सितारगंज उत्तराखंड जा रहे थे. हालांकि, इसी दौरान पुलिस ने उन्हें रास्तें ही गिरफ्तार कर लिया. पकड़े गए तस्कर उत्तम ने बताया कि सितारगंज उत्तराखंड के रहने वाले विवेक से कछुआ की तस्करी करने के लिए 80 हजार में बात हुई थी. विवेक ने बताया था तस्करी किए जाने वाले प्रतिबंधित कछुआ का मीट खाने में और शक्तिवर्धक दवा बनाने में प्रयोग किया जाता है. उत्तम साल 2024 में कछुआ की तस्करी करने में पहले भी जेल जा चुका है.

गणतंत्र दिवस की तारीख 26 जनवरी ही क्यों, आजादी के जश्न इस दिन क्यों मनाए जाते थे?

अंग्रेजों के भारत छोड़ने के फैसले के बाद देश की स्वतंत्रता की तारीख भी उन्हें ही तय करनी थी. उन्होंने 15 अगस्त की तारीख चुनी. देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ. स्वतंत्रता पश्चात संविधान निर्माण का कार्य 25 नवंबर 1949 को पूर्ण हुआ. 26 नवंबर को संविधान सभा ने उसे स्वीकार किया. इसे लागू कब किया जाए? इसका निर्णय अब अपनी सरकार – सदन को करना था. इसके लिए तारीख 26 जनवरी 1950 चुनी गई. लेकिन 26 जनवरी ही क्यों? इसलिए कि स्वतंत्रता के संघर्ष में इस तारीख का ऐतिहासिक महत्व है. गणतंत्र दिवस के अवसर पर पढ़िए इस तारीख से जुड़े प्रसंग,

31 दिसम्बर 1929 को लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था. मंच पर बैठे नेताओं से दूर तक फैले कार्यकर्ताओं का जोश उफान मार रहा था. उनका धैर्य चुक रहा था. वे अब और इंतजार को तैयार नहीं थे. मांग थी कि अंग्रेज जल्द देश छोड़ें. जनता को सिर्फ कुछ रियायतें नहीं चाहिए थीं. उसे पूर्ण स्वराज से कुछ भी कम स्वीकार नहीं था. अपने अध्यक्षीय भाषण में जवाहर लाल नेहरू ब्रिटिश राज को चुनौती दे रहे थे. यह भी संदेश दे रहे थे कि आजादी का मतलब सिर्फ विदेशी सत्ता से छुटकारा भर नहीं होगा. उन्होंने कहा था, “विदेशी शासन से अपने देश को मुक्त कराने के लिये अब हमें खुला विद्रोह करना है. देश के सभी नागरिकों को इसमें जुड़ना और मंजिल हासिल करने के लिए जुटना है.”

नेहरू ने यह भी साफ कर दिया था कि आजादी का मतलब सिर्फ विदेशी शासन को उखाड़ फेंकना भर नहीं है. उन्होंने कहा था, मुझे स्पष्ट स्वीकार कर लेना चाहिए कि मैं एक समाजवादी और रिपब्लिकन हूं. मेरा राजाओं और महाराजाओं में विश्वास नहीं है. न ही मैं उन उद्योगों में विश्वास रखता हूं जो राजे-महाराजे पैदा करते हैं और जो पुराने राजे-महाराजों से अधिक जनता की जिन्दगी और भाग्य को नियंत्रित करते हैं . लूटपाट और शोषण का तरीका अख्तियार करते हैं.”

पूर्ण स्वराज की तारीख 26 जनवरी

लाहौर अधिवेशन ने पूर्ण स्वराज का लक्ष्य तय किया. इसके लिए 26 जनवरी 1930 की तारीख का ऐलान हुआ. अंग्रेजों को अल्टीमेटम दिया कि अगर इस तारीख तक पूर्ण स्वराज देने का फैसला नहीं करते तो देशवासी खुद को स्वतंत्र घोषित कर देंगे. अधिवेशन के फैसलों से साफ था कि कांग्रेस निर्णायक लड़ाई के लिए तैयार है. इस मौके पर पारित प्रस्तावों में गोलमेज सम्मेलन के बहिष्कार , पूर्ण स्वराज्य को अपना मुख्य लक्ष्य घोषित करने , सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने , करों का भुगतान न करने, काउंसिल के चुनावों में भाग न लेने और मौजूदा सदस्यों के पद त्याग के फैसले शामिल थे. इन सबसे भी आगे 26 जनवरी 1930 को देश भर में स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला था.

26 जनवरी को देश भर में फहराया तिरंगा

31 दिसम्बर 1929 की अर्द्धरात्रि में रावी नदी का जल शांत था. लेकिन तट पर स्वतंत्रता प्रेमियों का प्रवाह हिलोरे मार रहा था. ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारों की गूंज धरती से आकाश तक थी. भारी उल्लास और संघर्ष के संकल्प के बीच स्वतंत्रता का प्रतीक तिरंगा झंडा फहराया गया. यह क्रम यहीं नहीं थमना था. 26 जनवरी की तारीख पास थी और इस तारीख को देश के हर शहर-गांव और डगर पर तिरंगा फहराने की तैयारी थी. 26 जनवरी 1930 को पूरे देश में जगह-जगह अंग्रेजी राज के दमन चक्र की परवाह किए बिना तिरंगा फहराया गया. सभाओं-सम्मेलनों का आयोजन हुआ. सामूहिक रूप से स्वतंत्रता प्राप्त करने की शपथ ली गई. इस कार्यक्रम को अभूतपूर्व सफलता मिली. गांवों तथा कस्बों में सभायें आयोजित की गयीं. 26 जनवरी को देश भर में स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने का क्रम 1947 में आजादी मिलने तक जारी रहा.

संविधान रचना और उसकी स्वीकृति

भारत के संविधान का पहला प्रारूप अक्टूबर 1947 में तैयार हो गया था. इस प्रारूप के लिए बहुत सी आधार सामग्री संकलित की गई. “संवैधानिक पूर्वदृष्टान्त” नाम के तीन संकलनों में लगभग 60 देशों के संविधान के महत्वपूर्ण अंश सम्मिलित थे. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की अगुवाई वाली प्रारूप कमेटी ने इस प्रारूप का परीक्षण किया. 21 फरवरी 1948 को इस कमेटी ने संविधान का प्रारूप पेश किया. ढेर सारी आपत्तियां और संशोधन पेश हुए.

इन पर विचार के लिए गठित विशेष कमेटी ने कतिपय संशोधनों को 26 अक्टूबर 1948 को संविधान सभा में पेश दूसरे प्रारुप में शामिल किया. संविधान का दूसरा वाचन 16 नवम्बर को पूर्ण हुआ. अगले दिन तीसरा वाचन प्रारम्भ हुआ. 26 नवम्बर 1949 को संविधान पारित करने का प्रस्ताव स्वीकार हुआ. इस तरह संविधान सभा के जरिये भारत की जनता ने प्रभुत्व सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य का संविधान स्वीकार, अधिनियमित और स्वयं को समर्पित किया. संविधान बनाने में 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन का समय लगा.

26 जनवरी, तब स्वतंत्रता दिवस, अब गणतंत्र दिवस

स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान 1930 से 1947 तक 26 जनवरी को देश भर में स्वतंत्रता दिवस के आयोजन किए जाते थे. स्वतंत्रता के पूर्व 26 जनवरी की तारीख़ स्वतंत्रता प्राप्त करने के लक्ष्य का स्मरण और संकल्प दिलाती थी. स्वतंत्रता के पश्चात यह तारीख विजय और उस लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति की प्रतीक बन गई. संविधान सभा 26 नवम्बर 1949 को लोकतांत्रिक गणराज्य का संविधान स्वीकार कर चुकी थी.

24 जनवरी 1950 संविधान सभा की आखिरी तारीख थी. 26 जनवरी 1950 से औपचारिक तौर पर संविधान प्रभावी हुआ और क्रियान्वयन में आ गया. भारतीय संविधान की बड़ी विशेषता उसका लचीलापन है. बदलते समय की अपेक्षाओं के अनुरूप उसमें संशोधनों का सिलसिला चला है. संविधान ने जिस लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली को स्वीकार किया, उसने देश के नागरिकों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार दिया. 1952 से अद्यतन केंद्र से राज्यों तक के चुनाव, शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण और उसके अनुरूप व्यवस्था संचालन संविधान की सफलता और क्षमता प्रमाणित करते हैं .

2024 के चुनाव में संविधान बन गया चुनावी मुद्दा

देश के संविधान की सफलता की बड़ी मिसाल भिन्न विचारधाराओं के राजनीतिक दलों और प्रत्येक नागरिक में उसके प्रति आदर और संरक्षण का भाव है. पिछले 2024 के लोकसभा चुनाव में तो विपक्ष ने संविधान को बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया था. विपक्ष उसे खतरे में बता रहा था तो सत्ता पक्ष भरोसा दे रहा था कि संविधान को कोई छू नहीं सकता.

देश के संविधान की जब चर्चा होती है तो प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉक्टर भीम राव आंबेडकर के 25 नवम्बर 1949 के उस भाषण को जरूर याद किया जाता है, “मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे जितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान में अमल लाने का काम सौंपा जाए खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा. दूसरी ओर संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो यदि वे लोग जिन्हें संविधान अमल में लाने का काम सौंपा जाए, अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा. “

आंबेडकर और राजेंद्र प्रसाद की नसीहत

डॉक्टर अम्बेडकर ने सचेत किया था, “आजादी मिलने के साथ हमारे वे सारे बहाने खत्म हो गए हैं जिसके तहत हम हर ग़लती के लिए अंग्रेजों को जिम्मेदार ठहरा देते थे. अगर इसके बाद भी कुछ ग़लत होता है तो हम अपने अलावा किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकते.” 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का समापन भाषण भी संविधान की सफलता के लिए उसके पालन-संरक्षण से जुड़े हर अंग को नसीहत दे रहा था, ” जो लोग चुनकर आएंगे वे योग्य,चरित्रवान और ईमानदार हुए तो वे दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम बना देंगे. यदि उनमें इन गुणों का अभाव हुआ तो संविधान देश की कोई मदद नही कर सकता. आखिरकार एक मशीन की तरह संविधान भी निर्जीव है. इनमें प्राणों का संचार उन व्यक्तियों द्वारा होता है, जो इस पर नियंत्रण करते हैं तथा इसे चलाते हैं. “

क्या कुंभ की भीड़ आजादी की जंग से जुड़ेगी? जानें पंडित नेहरू को किस बात की शंका थी

पंडित नेहरू धार्मिक कर्मकाण्डों और पूजा-पाठ में भरोसा नहीं करते थे. उनकी जन्मभूमि इलाहाबाद थी. गंगा नदी से उन्हें लगाव था लेकिन इसके पीछे वे कोई धार्मिक कारण नहीं मानते थे. 1930 में कुंभ था. जनवरी महीने में नेहरू इलाहाबाद में थे. लाखों की भीड़ उमड़ रही थी. इस भीड़ को देखते नेहरू सोच रहे थे कि क्या इस भीड़ को आजादी के आंदोलन और 26 जनवरी 1930 तक भारत को पूर्ण स्वतंत्रता देने के आह्वान की जानकारी है? क्या ये भीड़ ऐसा ही उत्साह आजादी की लड़ाई से जुड़ने में भी दिखाएगी?

अपनी आत्मकथा में उन्होंने शंका जाहिर की कि कहीं ऐसा तो नहीं कि लोगों में कर्मकांड और दकियानूसी विचार इतना भर गए हैं कि दूसरे विचारों के लिए गुंजाइश ही नहीं है. हालांकि, इस भीड़ के तमाम लोग जब नेहरू से मिलते थे और आजादी से जुड़े सवाल करते थे या फिर भीड़ में आंदोलन के नारे गूंजते थे तो उन्हें उम्मीद बंधती थी. भरोसा होता था कि देश जाग रहा है.

गंगा के प्रति लोगों की आस्था चकित करती

कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में अंग्रेजों को 26 जनवरी 1930 तक भारत को पूर्ण स्वतंत्र करने का अल्टीमेटम दिया गया था. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी. कांग्रेस की चेतावनी में साफ किया गया था कि अगर अंग्रेजों ने ऐसा नहीं किया तो देश वासी खुद को स्वतंत्र घोषित कर देंगे. कांग्रेस की कोशिश ज्यादा से ज्यादा लोगों को आंदोलन से जोड़ने की थी. जनवरी महीने की शुरुआत में पंडित नेहरू इलाहाबाद में थे.

यह कुंभ का साल था. लाखों हिन्दू नर-नारी प्रयागराज में संगम पर स्नान के लिए उमड़ रहे थे. नेहरू उनके उत्साह पर मुग्ध थे. उन्हें आश्चर्य होता था कि हजारों साल से लोगों का विश्वास गंगा मैया में स्नान के लिए उन्हें इलाहाबाद खींच लाता है.

धर्म के अलावा भी लोग क्या कुछ सोच रहे ?

उस भीड़ को देखते नेहरू के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. उनकी सोच का विषय इस भीड़ के धार्मिक विश्वास और गंगा मैया के प्रति उनकी आस्था नहीं थी. वे फिक्रमंद थे कांग्रेस के देश को पूर्ण स्वतंत्र घोषित करने के अल्टीमेटम की कामयाबी को लेकर. कांग्रेस जनता से हर साल 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस मनाने की अपील कर चुकी थी. अंग्रेजों को जनता की ताकत का अहसास दिलाने के लिए जरूरी था कि स्वाधीनता दिवस के कार्यक्रम में जनता ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी करे. कुंभ की भीड़ को निहारते नेहरू सोच रहे थे कि क्या इसमें शामिल लोगों को इसकी जानकारी है? क्या वे जैसा उत्साह गंगा मैया में स्नान के लिए दिखा रहे हैं, वैसा ही आजादी के आंदोलन से जुड़ने में ही दिखाएंगे? यह सब सोचते नेहरू को इस बात की शंका थी कि कहीं कर्मकांडों और दकियानूसी विचारों ने लोगों के दिमागों पर ऐसा पहरा तो नहीं लगा दिया है कि उसमें दूसरे विषयों के बारे में सोचने की गुंजाइश ही नहीं बची हो?

क्या सत्याग्रह में भी देंगे साथ?

पंडित नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “जनवरी के शुरू में मैं इलाहाबाद में था. यह एक बड़े भारी मेले का वक्त था. शायद यह कुम्भ का साल था और लाखों स्त्री-पुरुष लगातार इलाहाबाद या यात्रियों की भाषा में प्रयागराज आ रहे थे. इसमें सब तरह के लोग थे. इनमें खासतौर पर किसान थे. मजदूर, दुकानदार, कारीगर, व्यापारी, औद्योगिक और ऊंचे पेशे वाले भी लोग थे.

वास्तव में हिंदुओं में से सभी तरह के लोग आए थे. जब मैं इस बड़ी भीड़ को संगम की ओर जाते और आते अटूट धारा को देखता तो मैं सोचा करता कि ये लोग सत्याग्रह और शान्तिपूर्ण सीधे हमले की पुकार का कितना साथ देंगे? इनमें से कितने लाहौर के प्रस्तावों को जानते हैं या उनकी परवाह करेंगे? उनका यह विश्वास कितना आश्चर्यजनक और मजबूत था, जिसमें वे और बुजुर्ग हजारों वर्षों से हिंदुस्तान के हर हिस्से से पवित्र गंगा मैया में स्नान करने के लिए चले आते रहे. क्या वे इस अदम्य उत्साह को अपनी जिंदगी सुधारने के लिए राजनीतिक और आर्थिक कार्य में नही लगा सकते? या उनके दिमागों में कर्मकांड और दकियानूसी इतनी भर चुकी है कि दूसरे विचारों की गुंजाइश ही नही रही ?

संगम पर मालवीय के साथ

कुंभ से ही जुड़े एक दूसरे प्रसंग से भी साफ होता है कि गंगा स्नान से किसी प्रकार के पुण्य लाभ में नेहरू का भरोसा नहीं था. यह 1930 के पहले के 1924 के अर्धकुंभ का अवसर था. फिसलन और सुरक्षा के नाम पर अधिकारियों ने संगम स्नान पर रोक लगा दी थी. इस रोक के लिए पुलिस की तैनाती और बैरिकेडिंग भी की गई थी. प्रतिबंध के खिलाफ पंडित मदन मोहन मालवीय संगम पर पहुंचकर धरने पर बैठ गए थे. तीर्थ यात्रियों को संगम पर स्नान की उनकी मांग थी. उन दिनों नेहरू इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष थे. जानकारी मिलने पर नेहरू भी वहां पहुंच गए थे.

गंगा में नहा पुण्य कमाने की इच्छा नहीं

इस मौके पर जो कुछ घटित हुआ उसका अपनी आत्मकथा “मेरी कहानी” में उल्लेख करते हुए नेहरू ने लिखा, “खबर पढ़ने के बाद मैं संगम के लिए निकल गया. मेरा स्नान का कोई इरादा नहीं था, क्योंकि ऐसे मौकों पर गंगा नहाकर पुण्य कमाने की चाह मुझे नहीं थी. मेला पहुंचने पर मैंने देखा कि मालवीय जिला मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ जल सत्याग्रह कर रहे हैं. 200 लोग उनके साथ थे. जोश में आकर मैं भी सत्याग्रह दल में शामिल हो गया. मैदान के उस पार लकड़ियों का बड़ा सा घेरा बनाया गया था, ताकि लोग संगम नहीं पहुंच सकें. हम आगे बढ़े, तो पुलिस ने रोका, हमारे हाथ से सीढ़ी छीन ली. विरोध में हम रेत पर बैठकर धरना देने लगे. धूप बढ़ती जा रही थी. दोनों तरफ पैदल और घुड़सवार पुलिस खड़ी थी.

मेरा धैर्य अब टूटने लगा था. इसी बीच घुड़सवार पुलिस को कुछ ऑर्डर दिया गया. मुझे लगा कि ये लोग कहीं हमें कुचल न दें. पीटना न शुरू कर दें. मैंने सोचा क्यों न हम घेरे के ऊपर से ही फांद जाएं. मेरे साथ बीसों आदमी चढ़ गए. कुछ लोगों ने बल्लियां भी निकाल लीं. इससे रास्ता जैसा बन गया. मुझे बहुत गर्मी लग रही थी, सो मैंने गंगा में गोता लगा दिया.”

नहा के निकलने के बाद भी नेहरू ने दिखा कि मालवीय का धरना जारी था. वे काफी खिन्न थे. एक बार फिर नेहरू उनके साथ बैठ गए. नेहरू ने आगे लिखा,”अचानक बिना किसी से कुछ कहे मालवीय उठे और पुलिस के बीच से निकलकर गंगा में कूद पड़े. मालवीय जैसे दुर्बल और बूढ़े शरीर वाले व्यक्ति को इस तरह गोता लगाते देखकर मैं हैरान रह गया. इसके बाद तो पूरी भीड़ गंगा में डुबकी लगाने के लिए टूट पड़ी. हमें लग रहा था कि सरकार कुछ करेगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. “

राख गंगा में बहा देना

गंगा-जमुना से नेहरू का लगाव लेकिन उसके पीछे कोई धार्मिक आधार न होने का उल्लेख पंडित नेहरू ने अपनी वसीयत में भी किया है. मृत्यु के लगभग एक दशक पहले लिखी अपनी वसीयत में नेहरू ने लिखा था कि उनके मरने के बाद कोई धार्मिक अनुष्ठान न किए जाएं, क्योंकि ऐसा करना पाखंड और अपने को धोखा देना होगा. विदेश में मरने पर दाह संस्कार वहीं कर देने लेकिन राख इलाहाबाद भेज दिए जाने की उन्होंने इच्छा व्यक्त की थी.

राख का ज्यादातर हिस्सा हवाई जहाज से देश के खेतों में बिखेरने के लिए उन्होंने लिखा, क्योंकि उस मिट्टी से उन्हें बहुत प्यार था. मुट्ठी भर राख इलाहाबाद में गंगा जी में प्रवाहित करने की उन्होंने इच्छा व्यक्त की थी. लेकिन उन्होंने साफ किया,ऐसा करने के पीछे कोई धार्मिक महत्व नहीं है. मुझे बचपन से गंगा और जमुना से लगाव रहा और जैसे-जैसे में बड़ा हुआ मेरा ये लगाव लगातार बढ़ता गया.

बेशक नेहरू का धार्मिक अनुष्ठानों में भरोसा न रहा हो और अपनी मृत्यु बाद भी उन्होंने ऐसा करने की मनाही की हो. लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं हुआ. दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार हिन्दू धर्म के विधि विधान के साथ पूर्ण हुआ. अनुष्ठानों के लिए काशी के पंडित बुलाए गए. संगम पर अस्थि विसर्जन भी पूजा-पाठ और मंत्रोच्चारण के बीच हुआ था.