सोमवार से पीएम मोदी करेंगे कोल्हान मे चुनावी शंखनाद,क्या चार मुख्यमंत्री की ताकत झोंकने से इस बार कोल्हान की तस्बीर बदलेगी..?
झारखंड डेस्क
झारखंड विधानसभा चुनाव में कोल्हान आज सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है।इस क्षेत्र में आदिवासियों का बड़ा वोट बैंक माना जाता है।जिसके कारण सत्ता तक पहुंचने में हेमन्त सोरेन को यही क्षेत्र मददगार होता रहा है।
यहां आदिवासियों की नाराजगी से राजनीतिक दलों के पांव के नीचे से जमीन खिसकती रही है। 2019 के चुनाव परिणाम से सबक लेते हुए इस बार एनडीए और इंडिया गठबंधन के सामने भी असली रणक्षेत्र कोल्हान ही बना हुआ है। एनडीए कोल्हान में अपनी जमीन वापस पाने के लिए प्रयासरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झारखंड विधानसभा चुनाव प्रचार का शंखनाद यहीं से करेंगे। सोमवार को चाईबासा में प्रधानमंत्री हुंकार भरेंगे। उसके ठीक एक दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह घाटशिला विधानसभा के धालभूमगढ़ में अपनी चुनावी सभा करेंगे। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की सभाएं कोल्हान की 14 सीटों पर प्रभाव डालेंगी।
क्या पीएम मोदी के दौरे से यहां बदलेगा माहौल..?
सोमवार को चाईबासा में होने वाले पीएम मोदी के कार्यक्रम में आदिवासी वोटरों के साथ ही कुड़मी और अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटरों को साधने का प्रयास किया जाएगा। कोल्हान की 14 सीटों पर औसतन 20 से 25 फीसदी आदिवासी वोटर हैं। इसके साथ ही ईचागढ़, जुगसलाई सहित कई सीटों पर कुड़मी वोटों की संख्या भी 15 से 18 फीसदी के करीब है। यह संख्या भी निणार्यक हो सकती है।
भाजपा का यहां से 10 सीटों पर है लक्ष्य
अगर हम बात करें वर्ष 2009 की तो यहां से विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। कोल्हान में भाजपा और झामुमो को पांच-पांच सीटें मिली थीं। भाजपा के समर्थन से झामुमो की सरकार बनी थी, मगर कुछ दिनों के बाद ही गिर गई थी। 2014 में भी एनडीए को कोल्हान में छह सीटें मिली थीं। रांची में रघुवर दास के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी थी। मजबूत बहुमत के कारण पहली बार किसी सरकार ने सूबे में अपना कार्यकाल पूरा किया था। मगर 2019 में एनडीए इस प्रदर्शन को बरकरार नहीं रख सका। स्थिति यह हो गई कि कोल्हान की राजनीतिक पिच पर एनडीए शून्य पर आउट हो गया।
यहां की 14 सीटों पर है सभी की निगाहें
हालांकि इसका बड़ा कारण भाजपा और आजसू के बीच गठबंधन नहीं होना था। वहीं महागठबंधन में झामुमो और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था। 14 में 11 सीटों पर झामुमो, दो पर कांग्रेस और एक पर भाजपा से बागी हुए सरयू राय बतौर निर्दलीय चुनाव जीतने में सफल हुए थे। इसका परिणाम यह हुआ कि एनडीए सत्ता से बाहर हो गया। ऐसे में झारखंड चुनाव में इन 14 सीटों पर सभी की निगाहें हैं।
आजसू और जदयू से गटबंधन के बाद एनडीए को बढ़ी उम्मीद
एनडीए का इस बार समीकरण बदला है । उसे न केवल आजसू का साथ मिला है, बल्कि कोल्हान में एक सीट पर जदयू भी मैदान में है। जदयू के दूसरे उम्मीदवार राजा पीटर तमाड़ से चुनाव लड़ रहे हैं। जदयू के दोनों उम्मीदवार के नाम मुख्यमंत्री को हराने का रिकॉर्ड भी है। सरयू राय ने मुख्यमंत्री रहते अपनी ही पार्टी के रघुवर दास का हराया था। वहीं, राजा पीटर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को हरा चुके हैं। माना जा रहा है कि जदयू के मैदान में आने से बिहार के ओबीसी के साथ ही सामान्य जातियों के वोट भी एनडीए के पक्ष में गोलबंद होंगे।
भाजपा ने राज्य के चार मुख्यमंत्री के ताकत को किया यहां समेटने का प्रयास
झामुमो से भाजपा में गए पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन खुद सरायकेला और उनके बेेटे बाबूलाल सोरेन घाटशिला से चुनावी मैदान में हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री रघुवार दास की बहू पूर्णिमा दास साहू जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र से और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा पोटका सीट से चुनाव लड़ रही हैं। राज्य में एक और मुख्यमंत्री रह चुके मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगन्नाथपुर सीट से चुनाव मैदान में हैं। इन सबकी नजर भी प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री के चुनावी कार्यक्रमों पर लगी हुई है।
Nov 03 2024, 08:55