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लखनऊ एयरपोर्ट पर फ्लोरीन रिसाव का पता चलने से हड़कंप, एनडीआरएफ की टीम पहुंची

लखनऊ के चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर शनिवार दोपहर टर्मिनल 3 के कार्गो क्षेत्र में फ्लोरीन रिसाव की सूचना मिलने के बाद दहशत फैल गई।

राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआर) की टीमों के साथ अग्निशमन सेवा घटनास्थल पर है। यात्रियों की सुरक्षा के लिए एनडीआरएफकी ज़रूरी चेकिंग बढ़ा दी। सुचना मिलते ही लोगों में डर फ़ैल गया जिसे काबू में लाया जा रहा है। 

लखनऊ हवाई अड्डे पर फ्लोरीन का रिसाव कहाँ हुआ?

अग्निशमन विभाग के अनुसार, रिसाव एक दवा की पैकेजिंग से हुआ है जिसमें फ्लोरीन होता है और स्थिति की पहचान करने और उसे प्रबंधित करने के प्रयास जारी हैं।

फ्लोरीन के नकारात्मक प्रभाव क्या हैं?

सुरक्षा डेटा शीट के अनुसार, फ्लोरीन के संपर्क में आने से महत्वपूर्ण स्वास्थ्य खतरे हो सकते हैं:

• फ्लोरीन आग का कारण बन सकता है या उसे तेज़ कर सकता है; ऑक्सीडाइज़र के रूप में कार्य करता है।

• इसमें दबाव वाली गैस होती है, जो गर्म होने पर फट सकती है।

• यदि साँस के द्वारा शरीर में चला जाए तो यह घातक है, जिससे स्वास्थ्य को गंभीर ख़तरा उत्पन्न होता है।

• गंभीर जलन और आंखों को गंभीर क्षति पहुंचाता है।

• श्वसन पथ के लिए संक्षारक, जिससे संभावित दीर्घकालिक क्षति हो सकती है।

फ्लोरीन के संपर्क को कैसे रोकें

• सुरक्षात्मक दस्ताने, आंख या चेहरे की सुरक्षा, और श्वसन सुरक्षा का उपयोग करें।

• फ्लोरीन को कपड़ों, असंगत सामग्रियों और दहनशील सामग्रियों से दूर रखें। सुनिश्चित करें कि रिडक्शन वाल्व ग्रीस और तेल से मुक्त हैं।

• गैस के संचय को रोकने के लिए फ्लोरीन का उपयोग केवल बाहर या अच्छी तरह हवादार क्षेत्रों में करें।

• फ्लोरीन गैस में सांस न लें। पदार्थ को संभालते समय खाने, पीने या धूम्रपान करने से बचें।

• फ्लोरीन को संभालने के बाद हाथों को अच्छी तरह से धोएं और इसे केवल अच्छी तरह हवादार स्थानों पर ही संग्रहित करें।

*बांग्लादेश में खालिदा जिया की वापसी क्यों भारत के लिए चुनौती?

# bangladesh_coupe_khaleda_zias_return_effect_on_india 

बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद शेख हसीना के भारत भाग जाने के बाद, उनकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया, जो पूर्व प्रधानमंत्री हैं, को वर्षों की नजरबंदी से रिहा कर दिया गया है। उनकी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ( बीएनपी) देश में मुख्य विपक्षी पार्टी है। देश की अंतरिम सरकार चुनाव कराएगी, जिसमें उनकी जीत की पूरी संभावना है। जिया का सत्ता में वापस आना भारत के लिए चिंताजनक होगा। 

शेख हसीना की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के एक मामले में 17 साल की सजा सुनाए जाने के बाद 2018 में जेल में डाल दिया गया था। जेल से उनकी रिहाई इस बात का संकेत है कि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी पर उनकी पकड़ बनी हुई है, जिसकी वे अध्यक्ष बनी हुई हैं। माना जा रहा है कि अपनी खराब सेहत के बावजूद खालिदा जिया बनने वाली अंतरिम सरकार में अहम भूमिका निभाएंगी। भारत के लिए, खालिदा जिया की मुख्यधारा बांग्लादेशी राजनीति में वापसी आने वाले समय के लिए सकारात्मक संकेत नहीं है। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनका पाकिस्तान समर्थक रवैया रहा है। साथ ही उनकी पार्टी और उनके संभावित सहयोगी जमात-ए-इस्लामी का भी।

बीएनपी सत्ता में आने से पहले ही शेख हसीना को शरण देने पर नाखुशी जाहिर कर चुकी है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक बीएनपी के एक नेता ने कहा, 'हमारी पार्टी का मानना है कि बांग्लादेश और भारत को आपसी सहयोग करना चाहिए। अगर आप हमारे दुश्मन की मदद करते हैं तो उस आपसी सहयोग का सम्मान मुश्किल हो जाता है।'

खालिदा जिया के कार्यकाल के दौरान भारत विरोधी ताकतें बांग्लादेश में मजबूत हुईं। आतंकियों को बांग्लादेश के इस्तेमाल की खुली छूट दे दी गई। जिया के शासन के दौरान, पहले 1991 से 1996 तक और फिर 2001 से 2006 तक, पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद में तेजी आई थी। 

1997 में खालिदा जिया ने खुलेआम पूर्वोत्तर भारत में विद्रोही समूहों के लिए बीएनपी के समर्थन की घोषणा की, और दावा किया कि वे स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा: "वे (पूर्वोत्तर विद्रोही) स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं। हमने भी इसके लिए लड़ाई लड़ी है, इसलिए हम हमेशा किसी भी स्वतंत्रता आंदोलन के पक्ष में हैं।"

जिया ने कहा कि पूर्वोत्तर के उग्रवादी समूहों के खिलाफ बांग्लादेश की सेना के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जाएगी। दिलचस्प बात यह है कि जब शेख हसीना ने सत्ता संभाली, तो वह उग्रवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक प्रमुख भागीदार बन गईं और बांग्लादेशी धरती से भारत के खिलाफ काम करने वाले उग्रवादियों पर नकेल कसने में बड़ी सहायता प्रदान की।

वहीं, 2001 से 2006 के बीच जिया की सत्ता के दौरान पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने ढाका में मजबूती से अपनी उपस्थिति बढ़ाई। भारत में कई आतंकी हमलों में अहम भूमिका निभाई। पूर्वोत्तर राज्यों के उग्रवादियों का ठिकाना भी बीएनपी शासन के दौरान आईएसआई के संरक्षण में बांग्लादेश में बना। हालांकि, हसीना जब सत्ता में आईं तो उन्होंने कार्रवाई का आदेश दिया और विद्रोही नेताओं को भारत के हवाले कर दिया। 

यही नहीं, भारत का दूसरा दुश्मन चीन भी बीएनपी का करीबी सहयोगी रहा है। चीन बांग्लादेश की आजादी का विरोधी रहा है। शेख मुजीब की हत्या के बाद उसने बांग्लादेश को मान्यता दी थी।

क्या है MUDA केस, जिसमें सिद्धारमैया पर चलेगा मुकदमा; राज्यपाल ने दी मंजूरी

#governorgivespermissiontoprosecutecmsiddaramaiahinmuda_case 

मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया बुरी तरह फंस गए हैं। अब उनके खिलाफ केस चलेगा। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है।

राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने बीते दिनों मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण के कथित भूमि घोटाले में मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए कैबिनेट की राय मांगी थी। जिसके बाद गुरुवार को मंत्रिपरिषद की बैठक हुई, जिसमें राज्यपाल को कारण बताओ नोटिस वापस लेने की सलाह दी गई। साथ ही मंत्रिपरिषद ने इसे बहुमत से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करार दिया। हालांकि राज्यपाल ने कानूनी विशेषज्ञों से इस संबंध में राय ली। जिसके बाद राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। 

आरटीआई एक्टिविस्ट टीजे अब्राहम, प्रदीप और स्नेहमयी कृष्णा द्वारा दायर तीन याचिकाओं पर सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ केस चलाया जाएगा। अब्राहम ने राज्यपाल से सीएम के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत केस चलाने की मांग की थी क्योंकि उनकी मंजूरी के बिना सीएम के खिलाफ केस नहीं चल सकता। अपनी शिकायत में अब्राहम ने सिद्धारमैया के अलावा उनकी पत्नी, बेटे और मुडा के कमिश्नर के खिलाफ केस चलाने की भी मांग की थी।

बीजेपी और जेडीएस का आरोप है कि साल 1998 से लेकर 2023 तक सिद्धारमैया राज्य के प्रभावशाली और अहम पदों पर रहे। उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया, सिद्धारमैया भले ही सीधे तौर पर इस लेनदेन से न जुड़े हों, लेकिन उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल न किया हो ऐसा नहीं हो सकता।

केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता शोभा करनलाजे तो पहले ही कह चुके हैं कि जमीन के लेनदेन का मामला (MUDA Case) जब से शुरू हुआ तभी से सिद्धारमैया हमेशा अहम पदों पर रहे, इस मामले में उनके परिवार पर लाभार्थी होने का आरोप है। ऐसे में उनकी इसमें भूमिका ना हो ऐसा हो ही नही सकता।

क्या है MUDA केस?

मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने साल 1992 में कुछ जमीन रिहायशी इलाके में विकसित करने के लिए किसानों से ली थी। उसे डेनोटिफाई कर कृषि भूमि से अलग किया गया था। लेकिन 1998 में अधिगृहित भूमि का एक हिस्सा MUDA ने किसानों को डेनोटिफाई कर वापस कर दिया था। यानी एक बार फिर ये जमीन कृषि की जमीन बन गई थी। साल 1998 में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम थे। सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के भाई ने साल 2004 में डेनोटिफाई 3 एकड़ 14 गुंटा ज़मीन के एक टुकड़े को खरीदा था। 2004-05 में कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन की सरकार थी. उस सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम थे। इसी दौरान जमीन के विवादास्पद टुकड़े को दोबारा डेनोटिफाई कर कृषि की भूमि से अलग किया गया. लेकिन जब जमीन का मालिकाना हक़ लेने सिद्धरमैया का परिवार गया तो पता चला कि वहां लेआउट विकसित हो चुका था. ऐसे में MUDA से हक़ की लड़ाई शुरू हुई।

साल 2013 से 2018 के बीच सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे। उनके परिवार की तरफ़ से जमीन की अर्जी उन तक पहुंचाया गया। लेकिन सीएम सिद्धारमैया ने इस अर्जी को ये कहते हुए ठंडे बस्ते में डाल दिया कि लाभार्थी उनका परिवार है, इसीलिए वह इस फाइल को आगे नहीं बढ़ाएंगे। 2022 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के पास जब फाइल पहुंची। तब सिद्धारमैया विपक्ष के नेता थे। बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार ने MUDA के 50-50 स्कीम के तहत 14 प्लॉट्स मैसूर के विजयनगर इलाके में देने का फैसला किया।

कोलकाता रेप-मर्डर केसःआईएमए की देशव्यापी हड़ताल जारी, जानें क्या है डॉक्टरों की मांग?*
#doctors_24_hour_nationwide_strike_begins
कोलकाता डॉक्टर रेप-मर्डर केस के विरोध में देशभर के डॉक्टरों में गुस्सा है। इसे लेकर डॉक्टरो लगातार सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन भी कर रहे हैं। इन सबसे अलग इंडियन मेडिकल असोसिएशन (आईएमए) की अपील पर शनिवार को 24 घंटे की राष्ट्रव्यापी हड़ताल भी शुरू हो चुकी है। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई बर्बरता से गुस्साएं डॉक्टरों ने आज देशव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है। अस्पतालों में मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरवी अशोकन ने बताया कि डॉक्टर्स 24 घंटे के लिए हड़ताल पर रहेंगे। हड़ताल सुबह 6 बजे से शुरू होकर अगले दिन सुबह 6 बजे तक चलेगी। इस दौरान इमरजेंसी सेवाएं चलती रहेंगी, लेकिन ओपीडी और अन्य सेवाएं बंद रहेंगी। आरवी अशोकन ने कहा कि डॉक्टर के साथ हुई बर्बरता से देशभर के डॉक्टर आक्रोशित हैं। जिस लड़की के साथ घटना हुई, वो मध्यम वर्गीय परिवार की इकलौती संतान थी। इस घटना को किसी एक व्यक्ति ने अंजाम नहीं दिया, बल्कि इसमें कई लोग शामिल थे। जिस तरह उसको मारा गया, उसका वर्णन करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। *आईएमए की पांच प्रमुख मांगें* 1. आईएमए ने रेजिडेंट डॉक्टरों के कामकाज और रहने की स्थिति में बड़े पैमाने पर बदलाव की मांग की है। इसमें 36 घंटे की ड्यूटी शिफ्ट को कम करने और आराम करने के लिए सुरक्षित स्थानों की व्यवस्था करने को कहा गया है। 2. आईएमए की दूसरी बड़ी मांग एक केंद्रीय अधिनियम की है। इसके तहत 2023 में महामारी रोग अधिनियम 1897 में किए गए संशोधनों को 2019 के प्रस्तावित अस्पताल संरक्षण विधेयक में शामिल करने की है। आईएमए का मानना है कि इस कदम से 25 राज्यों में मौजूदा कानून मजबूत होंगे। आईएमए ने सरकार को कोरोना के दौरान लागू किए गए अध्यादेश जैसा ही अध्यादेश लाने का सुझाव दिया है। 3. आईएमए ने इस मामले में एक तय समय-सीमा में अपराध की निष्पक्ष और अच्छे से जांच और पीड़ित परिवार को पूरा न्याय देने की मांग की है। 4. आईएमए की मांग है कि सभी अस्पतालों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएं। हॉस्पिटल में सुरक्षा प्रोटोकॉल एयरपोर्ट की तरह ही हो। इसी कड़ी में अस्पतालों को अनिवार्य सुरक्षा अधिकार के साथ सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए। सीसीटीवी कैमरे लगवाए जाएं, अस्पतालों में तैनात सुरक्षाकर्मियों की तैनाती और प्रोटोकॉल का पालन किया जाए। 5. आईएमए ने पीड़ित परिवार को उचित और सम्मानजनक मुआवजा देने की भी मांग की है।
कोलकाता रेप-मर्डर केसःआईएमए की देशव्यापी हड़ताल जारी, जानें क्या है डॉक्टरों की मांग?*
#doctors_24_hour_nationwide_strike_begins
कोलकाता डॉक्टर रेप-मर्डर केस के विरोध में देशभर के डॉक्टरों में गुस्सा है। इसे लेकर डॉक्टरो लगातार सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन भी कर रहे हैं। इन सबसे अलग इंडियन मेडिकल असोसिएशन (आईएमए) की अपील पर शनिवार को 24 घंटे की राष्ट्रव्यापी हड़ताल भी शुरू हो चुकी है। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई बर्बरता से गुस्साएं डॉक्टरों ने आज देशव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है। अस्पतालों में मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरवी अशोकन ने बताया कि डॉक्टर्स 24 घंटे के लिए हड़ताल पर रहेंगे। हड़ताल सुबह 6 बजे से शुरू होकर अगले दिन सुबह 6 बजे तक चलेगी। इस दौरान इमरजेंसी सेवाएं चलती रहेंगी, लेकिन ओपीडी और अन्य सेवाएं बंद रहेंगी। आरवी अशोकन ने कहा कि डॉक्टर के साथ हुई बर्बरता से देशभर के डॉक्टर आक्रोशित हैं। जिस लड़की के साथ घटना हुई, वो मध्यम वर्गीय परिवार की इकलौती संतान थी। इस घटना को किसी एक व्यक्ति ने अंजाम नहीं दिया, बल्कि इसमें कई लोग शामिल थे। जिस तरह उसको मारा गया, उसका वर्णन करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। *आईएमए की पांच प्रमुख मांगें* 1. आईएमए ने रेजिडेंट डॉक्टरों के कामकाज और रहने की स्थिति में बड़े पैमाने पर बदलाव की मांग की है। इसमें 36 घंटे की ड्यूटी शिफ्ट को कम करने और आराम करने के लिए सुरक्षित स्थानों की व्यवस्था करने को कहा गया है। 2. आईएमए की दूसरी बड़ी मांग एक केंद्रीय अधिनियम की है। इसके तहत 2023 में महामारी रोग अधिनियम 1897 में किए गए संशोधनों को 2019 के प्रस्तावित अस्पताल संरक्षण विधेयक में शामिल करने की है। आईएमए का मानना है कि इस कदम से 25 राज्यों में मौजूदा कानून मजबूत होंगे। आईएमए ने सरकार को कोरोना के दौरान लागू किए गए अध्यादेश जैसा ही अध्यादेश लाने का सुझाव दिया है। 3. आईएमए ने इस मामले में एक तय समय-सीमा में अपराध की निष्पक्ष और अच्छे से जांच और पीड़ित परिवार को पूरा न्याय देने की मांग की है। 4. आईएमए की मांग है कि सभी अस्पतालों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएं। हॉस्पिटल में सुरक्षा प्रोटोकॉल एयरपोर्ट की तरह ही हो। इसी कड़ी में अस्पतालों को अनिवार्य सुरक्षा अधिकार के साथ सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए। सीसीटीवी कैमरे लगवाए जाएं, अस्पतालों में तैनात सुरक्षाकर्मियों की तैनाती और प्रोटोकॉल का पालन किया जाए। 5. आईएमए ने पीड़ित परिवार को उचित और सम्मानजनक मुआवजा देने की भी मांग की है।
कोलकाता रेप केसः पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में हैवानियत आई सामने, चौंकाने वाले ये 5 खुलासे

#kolkata_doctor_rape_murder_case_postmartem_report 

पश्चिम बंगाल में ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ रेप और उसके बाद हत्या की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। ट्रेनी डॉक्टर की रेप के बाद हत्या मामले में पूरे देश के डॉक्टर्स में उबाल है। आरोपियों के खिलाफ शिकंजा कसते हुए सीबीआई ने अपनी जांच भी तेज कर दी है। आरजी कर अस्पताल के 5 डॉक्टर्स को पूछताछ के लिए तलब किया गया है। वहीं मेडिकल कॉलेज तोड़फोड़ मामले में 25 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इस बीच कोलकाता कांड को लेकर लगातार नए-नए खुलासे हो रहे हैं। 

अब कोलकाता की लेडी डॉक्टर की हत्या और रेप के मामले में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है।कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ की गई बर्बरता का खुलासा पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हुआ है। कोलकाता डॉक्टर हत्या मामले में चार पेज की रिपोर्ट तैयार की गई है, रिपोर्ट में बताया गया हैः

1) अबनॉर्मल सेक्सुअलिटी और जेनाइटल टॉर्चर के कारण ट्रेनी डॉक्टर के प्राइवेट पार्ट्स पर गहरा घाव पाया गया।

2) चिल्लाने से रोकने के लिए नाक-मुंह और गले को लगातार दबाया गया, गला घोंटने से थायराइड कार्टिलेज टूट गया।

3) सिर को दीवार से सटा दिया गया, जिससे चिल्ला न सके, पेट, होंठ, उंगलियों और बाएं पैर पर चोटें पाई गईं।

4) इतनी जोर से हमला किया कि चश्मा के शीशे के टुकड़े उनकी आंखों में घुस गए, दोनों आंखों, मुंह और प्राइवेट पार्ट्स से खून बह रहा था।

5) चेहरे पर आरोपी के नाखूनों से बने खरोंच के निशान मिले, इससे पता चलता है कि पीड़िता ने खुद को बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था।

इससे पहले पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए डॉ. सुबर्नो गोस्वामी ने दावा किया था कि पीड़िता के शरीर जिस प्रकार की चोटें पाई गई हैं वह एक व्यक्ति से संभव नहीं है। गोस्वामी ने कहा कि फॉरेंसिक एक्सपर्ट ने जो सैंपल लिए हैं। उसमें मृतक लेडी डॉक्टर के प्राइवेट पार्ट काफी मात्रा में सीमेन मिला है। इसकी मात्रा करीब 151 ग्राम के करीब है। गोस्वामी ने कहा कि इतना सीमेन सिर्फ एक से अधिक व्यक्तियों के शामिल होने पर ही संभव है। 

कोलकाला के आरजी कर हॉस्पिटल एंड मेडिकल कॉलेज में शुक्रवार तड़के यह घटना सामने आई थी। कॉलेज के सेमिनार हॉल में एक लेडी डॉक्टर की डेडबॉडी पाई गई थी। शुरुआत में पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला बताया था लेकिन बाद में इस मामले की जांच में डॉक्टर के शरीर पर इंजरी और प्राइवेट पार्ट पर चोट मिलने के बाद हत्या और रेप का मामला माना गया था। पुलिस ने इस मामले में एक शख्स को अरेस्ट किया था। जिसकी पहचान संजय रॉय के तौर पर हुई थी।

जब शेख हसीना पर अमेरिका ने बनाया था दबाव, भारत ने दी थी चेतावनी, रिपोर्ट में खुलासा

#indian_officials_lobby_us_counterparts_to_stop_pressuring_hasina 

बांग्लादेश में तख्तापलट हो चुका है। देश में जारी भारी हिंसा के बीच शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा और भारत में शरण लेनी पड़ी है।बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हाला ही में देश के इस हालात के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने कहा है कि सेंट मार्टिन द्वीप न देने के कारण उन्हें सत्ता से हटाने की योजना बनाई गई थी। इसके पहले वो अमेरिका पर इशारों में आरोप लगाती थीं, जैसे मई 2024 में हसीना ने दावा किया था कि बांग्लादेश को तोड़कर एक ईसाई मुल्क बनाने की साज़िश चल रही है। एक गोरी चमड़ी वाले विदेशी ने उन्हें आसानी से चुनाव जीतने का ऑफर दिया था, बदले में वो बांग्लादेश में मिलिटरी बेस बनाना चाहता था। इस बीच एक चौंकाने वाले खुलासा हुआ है।

वॉशिंगटन पोस्ट में बांग्लादेश की राजनीति को लेकर बड़ा दावा किया गया है। रिपोर्ट में भारतीय और अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से कहा कि शेख हसीना के बांग्लादेश से भागने के एक साल पहले भारतीय अधिकारियों ने अपने अमेरिकी समकक्षों से बांग्लादेश की पूर्व पीएम पर दबाव डालना बंद करने को कहा था। 

इस रिपोर्ट के मुताबिक, बाइडन सरकार ने हसीना के कार्यकाल में एक बांग्लादेशी पुलिस यूनिट को बैन कर दिया था जिस पर अपहरण और हत्या करने का आरोप था। साथ ही लोकतंत्र को कमजोर करने वाले और मानवाधिकारों का हनन करने वाले बांग्लादेशियों पर वीज़ा प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दी थी।

रिपोर्ट में कहा गया है भारतीय अधिकारी अमेरिका के अधिकारियों से लगातार संपर्क में भी रहे। कई बैठकों में, भारतीय अधिकारियों ने अनुरोध किया कि संयुक्त राज्य अमेरिका अपने लोकतंत्र समर्थक बयानबाजी को कम करें।इसके लिए भारतीय अधिकारियों ने तर्क दिया कि अगर विपक्ष को चुनाव में सत्ता हासिल करने की अनुमति दी गई, तो बांग्लादेश इस्लामी गुटों के लिए पनाहगाह बन जाएगा, जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन जाएगा।

रिपोर्ट के मुताबिक एक भारतीय अधिकारी ने कहा, 'आप इसे लोकतंत्र के स्तर पर देखते हैं, लेकिन हमारे लिए यह मुद्दे बहुत गंभीर और अस्तित्व से जुड़े हैं।' उन्होंने आगे कहा, 'अमेरिकियों के साथ बहुत सी बातचीत हुई, जिसमें हमने कहा कि यह हमारे लिए एक मुख्य चिंता का विषय है और आप हमें रणनीतिक साझेदार के रूप में नहीं मान सकते जत कि हमारे पास किसी तरह की रणनीतिक सहमति न हो।' 

रिपोर्ट की माने तो इसके बाद बाइडन प्रशासन ने आलोचना को कम कर दिया और हसीना के शासन के खिलाफ आगे के प्रतिबंधों की धमकियों को टाल दिया, जिससे कई बांग्लादेशी निराश हो गए।

राहुल गांधी की नागरिकता रद्द करने की मांग लेकर दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे सुब्रह्मण्यम स्वामी, दायर की याचिका

#subramanian_swamy_file_a_petition_to_delhi_hc_regarding_rahul_gandhi_indian_citizenship 

कांग्रेस नेता व लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर एक बार फिर विवाद उठा है। पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने राहुल के नागरिकता में सवाल खड़े किए हैं। इस मुद्दे को लेकर वे दिल्ली हाईकोर्ट चले गए हैं। स्वामी ने केंद्र सरकार को राहुल गांधी के खिलाफ अपनी शिकायत पर स्टेट्स रिपोर्ट देने का निर्देश देने की भी मांग की है।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में विपक्ष के नेता ने उनकी नागरिकता के सवाल पर गृह मंत्रालय को जवाब नहीं दिया। इस मामले को लगातार उठा रहे बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने अब जानकारी दी है कि राहुल के खिलाफ कोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की गई है। स्वामी ने एक एक्स पोस्ट में बताया कि उनके सहयोगी वकील सत्य सभरवाल ने पीआईएल फाइल की है।

सुब्रमण्यम स्वामी ने विपक्ष के नेता राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता रद्द करने के लिए गृह मंत्रालय को निर्देश देने की मांग वाली याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल की। भाजपा नेता ने कोर्ट से मांग की है कि वह इस मामले पर केंद्र सरकार से स्टेटस रिपोर्ट की मांग करे।

सुब्रमण्यम स्वामी ने दावा किया है कि राहुल गांधी के पास ब्रिटेन की नागरिकता है। उनके पास ब्रिटिश पासपोर्ट है। स्वामी ने दावा किया है कि राहुल गांधी ने एक ब्रिटिश कंपनी के लिए दाखिल किए गए एनुअल रिटर्न में खुद को ब्रिटिश नागरिक बताया है। तब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी यह पूछते हुए कठघरे में खड़ा किया था कि क्या सोनिया गांधी उन्हें ब्लैकमेल कर रहीं हैं कि वो राहुल के खिलाफ कार्रवाई नहीं करें?

स्वामी ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने इंडियन सिटिजन होने के नाते भारतीय संविधान के आर्टिकल 9 का उल्लंघन किया। बता दें कि भारत में एक व्यक्ति को केवल एकल नागरिकता प्रदान की जाती है।

बांग्लादेश के नए मुखिया यूनुस ने पीएम मोदी को किया फोन, जानें क्या बात हुई

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बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद अंतरिम सरकार का गठन हो गया है। हसीना सरकार की तख्‍ता पलट के बाद बांग्‍लादेश की मौजूदा सरकार में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मोहम्‍मद यूनुस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टेलीफोन पर बात की है।

पीएम नरेंद्र मोदी ने जानकारी दी है कि उन्हें प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस का फोन आया। दोनों नेताओं ने बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति पर विचारों का आदान-प्रदान किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, "प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस से टेलीफोन पर बात की। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार ने मौजूदा स्थिति पर विचारों का आदान-प्रदान किया। लोकतांत्रिक, स्थिर, शांतिपूर्ण और प्रगतिशील बांग्लादेश के लिए भारत के समर्थन को दोहराया। उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं और सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, संरक्षा और संरक्षा का आश्वासन दिया।

बता दें कि पीएम मोदी ने भी स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से बांग्लादेश के हालात का जिक्र किया था। पीएम मोदी ने उम्मीद जताई थी कि हिंसा प्रभावित बांग्लादेश में हालात जल्द ही सामान्य होंगे। उन्होंने कहा था कि 140 करोड़ भारतीय पड़ोसी देश में हिंदुओं और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में कहा कि भारत शांति के लिए प्रतिबद्ध है और वह बांग्लादेश की विकास यात्रा में उसका शुभचिंतक बना रहेगा।

बांग्लादेश में शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के तख्तापलट और शेख हसीना के भारत आने के बाद आठ अगस्त को मोहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में शपथ ली थी। यूनुस के कार्यभार संभालने के बाद पीएम मोदी ने उन्हें शुभकामनाएं दी थी और बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आह्वान किया था।

बांग्लादेश के बाद अब इस देश में मचा सियासी तूफान, प्रधानमंत्री को पद से हटाया गया, अब कौन संभालेगा देश की बागडोर?

बांग्लादेश की आजादी के समय से चली आ रही सरकारी नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था ने इस देश में आखिरकार सरकार ही बदल दी। शेख हसीना प्रधानमंत्री पद और देश दोनों छोड़ चुकी हैं। साल 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर अस्तित्व में आए बांग्लादेश में नई अंतरिम सरकार बन चुकी है। हालांकि, हालात पूरी तरह से अभी भी नियंत्रित नहीं हो पाए हैं। इसी बीच एशिया के एक और देश में राजनीतिक संकट गंभीर हो गया है। हम बात कर रहे हैं थाईलैंड की जहां के प्रधानमंत्री श्रेथा थाविसिन (Srettha Thavisin) को पद से हटा दिया गया है। 10 पॉइंट्स में समझिए थाईलैंड में चल रहा पूरा घटनाक्रम और अब वहां हालात कैसे हैं।

थाईलैंड की सांविधानिक अदालत ने बुधवार को प्रधानमंत्री श्रेथा थाविसिन को उनके पद से हटाने का फैसला सुना दिया। यह फैसला थाविसिन के खिलाफ नैतिकता से जुड़े एक केस में सुनाया गया है। अदालत ने कहा कि श्रेथा थाविसिन ने संविधान का उल्लंघन किया है। जजों ने कहा कि श्रेथा को यह अच्छी तरह से पता था कि उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति की है जिसके अंदर नैतिकता को लेकर निष्ठा है ही नहीं। बता दें कि श्रेथा थाविसिन एक रियल एस्टेट टायकून हैं और उनका राजनीतिक करियर तुलनात्मक रूप से काफी नया है।

राजधानी बैंकॉक में स्थित इस संवैधानिक अदालत ने कहा कि श्रेथा ने जेल की सजा काट चुके वकील को कैबिनेट में नियुक्ति देकर नैतिकता के नियमों का उल्लंघन किया है। 9 जजों की बेंच में से 5 जजों ने श्रेथा और उनकी कैबिनेट को डिसमिस करने के लिए वोट किया। यह फैसला आने के एक सप्ताह पहले ही थाईलैंड की सुप्रीम कोर्ट ने यहां की ‘प्रोग्रेसिव मूव फॉरवर्ड पार्टी’ को भंग कर दिया था और इसके नेताओं पर 10 साल तक पॉलिटिक्स से बैन कर दिया था। इस पार्टी ने पिछले साल हुए चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीती थीं।

श्रेथा के खिलाफ यह केस सेना की ओर से नियुक्त 40 सीनेटरों के ग्रुप की ओर से फाइल किया गया था। उन्होंने कैबिनेट में पिचिट चुएनबेन को नियुक्त करने के लिए श्रेथा को पीएम कार्यालय से हटाने की मांग की थी। पिचिट पूर्व प्रधानमंत्री थकसिन शिनावात्रा के भी करीबी हैं। फैसला आने के बाद श्रेथा ने कि मैंने प्रधानमंत्री के तौर पर अपने कर्तव्य जिता संभव हो सकते थे उतनी निष्ठा के साथ निभाए। मैं अदालत का फैसला स्वीकार करता हूं। वहीं, भविष्य को लेकर उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता कि नई सरकार हमारी नीतियां जारी रखेगी या नहीं।

श्रेथा पिछले साल अगस्त में प्रधानमंत्री बने थे। इसके साथ ही वहां 3 महीने से चल रहा गतिरोध भी खत्म हो गया था। लेकिन इसका परिणाम यह रहा था कि उनकी फ्यू थाई पार्टी अपने लंबे समय से चले आ रहे सैन्य प्रतिद्वंद्वियों के साथ एक सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा बन गई थी। इस फैसले का मतलब पहले से ही उथल-पुथल का सामना कर रही थाईलैंड की राजनीति में और संकट की आमद हो सकता है। यहां राजनीति में बदलाव की मांग करने वाले अक्सर, सत्ता, सेना, राजशाही के समर्थकों और बड़े कारोबारियों के पावरफुल समूह से टकराते रहते हैं।

सरकार को बर्खास्त किए जाने के बाद अब यहां नई सरकार का गठन किया जाएगा। सत्ताधारी ‘फ्यू थाई’ पार्टी की अगुवाई वाला गठबंधन प्रधानमंत्री पद के लिए नया कैंडिडेट चुनेगा, जिस पर 500 सदस्यों वाली संसद में वोटिंग की जाएगी और नया प्रधानमंत्री चुना जाएगा। पिछले 2 दशक के दौरान थाईलैंड में दर्जनों सांसदों को प्रतिबंध का सामना करना पड़ा है। कई राजनीतिक दल भंग किए गए हैं और प्रधानमंत्री को तख्तापलट या फिर अदालत के आदेशों के जरिए पद से हटाया जाता रहा है। यहां की ज्यूडीशियरी का सत्ता की लड़ाई में अहम रोल है।