पितृपक्ष का आरम्भ, जाने पितरों के लिए क्यों जरूरी है श्राद्ध
श्रीप्रकाश यादव
चंदौली /भारतीय शास्त्रों में ऐसा माना जाता है कि पितृगण पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं और 16 दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आस-पास रहते हैं इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे पितृ गण नाराज हों। पितरों को खुश रखने के लिए पितृपक्ष में कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
पितृपक्ष के दौरान ब्राह्मण, जामाता, भांजा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए। इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं। इस दौरान कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं। ऐसे में ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बाद भी पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं
पितृपक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतुओं को मारना नहीं चाहिए, बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध कर उन्हें खिलाना चाहिए। हर दिन घर में भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता को खिलाना चाहिए ।पितृपक्ष के दौरान शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जरूर जलाएं और पितृगणों का ध्यान करें। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष में पितरों को जल देने और उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करने से व्यक्ति के समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं।
पितरों के श्राद्ध के लिए तिथि
जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं, जिस दिन वे पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा: इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है। इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्यु तिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं।
पंचमी: जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।
नवमी: सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
एकादशी और द्वादशी: एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।
चतुर्दशी: इस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है।
सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या: किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है।
शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्ध पक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। यह उचित भी है। पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें। जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपयोग करते हैं।
Sep 19 2024, 09:43