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मणिपुर में लगातार लौटाए जा रहे लूटे गए हथियार, राज्यपाल की अपील के बाद हो रहा सरेंडर

#weaponsarebeingreturnedcontinuouslyinmanipur

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद से ही हथियारों का सरेंडर जारी है। मणिपुर के राज्यपाल अजय कुमार भल्ला की अपील के बाद लूटे गए हथियार और बड़ी मात्रा में गोला बारूद लौटाए जा रहे हैं। मणिपुर में 13 फरवरी को केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगाया था। जिसके बाद राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने लूटे गए हथियार और गोलियां लौटाने की अपील की थी।

बुधवार को पुलिस ने बताया कि 87 तरह के हथियार, गोला-बारूद और अलग-अलग सामान लोग स्वेच्छा से सरेंडर कर रहे हैं। इंफाल ईस्ट, बिश्नुपुर, थौबल, कांगपोकपी, जिरीबाम, चुराचांदपुर और इंफाल वेस्ट जिलों में हथियार सरेंडर किए गए हैं।

कौन से जिले से कितने हथियार सरेंडर हुए

• इंफाल वेस्ट: सबसे ज्यादा हथियार इंफाल वेस्ट जिले से सरेंडर किए गए हैं। इनमें 12 सीएमजी मैगजीन के साथ, दो 303 राइफल मैगजीन के साथ, दो SLR राइफल मैगजीन के साथ, चार 12 बोर सिंगल बैरल, एक आईईडी और गोला-बारूद शामिल हैं।

• जिरीबाम: पांच 12 बोर डबल बैरल, एक 9mm कार्बाइन मैगजीन के साथ, गोला-बारूद और ग्रेनेड सरेंडर किए गए।

• कांगपोकी: एक एके 47 राइफल 2 मैगजीन के साथ, एक .303 राइफल, एक Smith & Wesson रिवॉल्वर, एक .22 पिस्टल मैगजीन के साथ, एक सिंगल बैरल राइफल, तीन इम्प्रोवाइज्ड मॉर्टर, 9 मॉर्टर बम, ग्रेनेड और अन्य चीजें सरेंडर किए गए।

• बिश्नुपुर: 6 SBBL गन , एक राइफल, 3 DBBL, एक .303 राइफल मैगजीन के साथ, एक कार्बाइन SMG वन मैगजीन के साथ और 15 लाइव राउंड, गोला-बारूद और अन्य सामग्री सरेंडर किए गए हैं।

• थौबल: एक सब मशीन गन 9एमएम कार्बाइन 1A मैगजीन के साथ, एक रॉयट गन और अन्य सामग्री सरेंडर किए गए हैं।

• इंफाल ईस्ट: 2 कार्बाइन, एक एसएलआर दो मैगजीन के साथ, एक लाइव राउंड, 2 लोकल कार्बाइन मैगजीन, 4 इन्सास राइफल मैगजीन, बड़ी संख्या में गोला-बारूद सरेंडर की गई।

राज्यपाल की अपील का असर

इससे पहले राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने लोगों से लूटे गए और अवैध रूप से रखे गए हथियारों को 7 दिन के भीतर स्वेच्छा से पुलिस के सुपुर्द करने की 20 फरवरी को अपील की थी। इसके साथ ही गवर्नर ने यह आश्वासन भी दिया था कि इस अवधि के दौरान हथियार छोड़ने वालों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। मणिपुर के मुख्य सचिव पीके सिंह ने रविवार को कहा था कि अगर कोई हथियार त्यागना चाहता है तो लूटे गए और अवैध रूप से रखे गए हथियारों को स्वेच्छा से पुलिस के सुपुर्द करने के लिए दिया गया 7 दिन का समय पर्याप्त है।

13 फरवरी को मणिपुर में लगा था राष्ट्रपति शासन

बता दें कि मणिपुर में पिछले 2 साल से मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जातीय संघर्ष चल रहा है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह और उनके कैबिनेट मंत्रियों ने 9 फरवरी को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। बीरेन सिंह पर राज्य में 21 महीने से जारी हिंसा के चलते काफी दबाव था। मणिपुर में नेतृत्व संकट के बीच कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की थी। जिसके बाद केंद्र सरकार ने 13 फरवरी को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था।

मणिपुर में कैसे थमेगी हिंसा? तैयार की जा रही महिला ब्रिगेड, दी जा रही हथियार चलाने की ट्रेनिंग

#manipur_militants_trained_women_brigades_for_firing_weapons

मणिपुर एक बार फिर हिंसा की आग में झुलस रहा है। कुछ दिनों पहले मैतेई समुदाय की महिलाओं और बच्चों के शव मिलने के बाद राज्य में हिंसा भड़क गई। हत्या और आगजनी की घटनाओं से मणिपुर उबल रहा है। इस हिंसा से पूरे राज्य में तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है। इस बीच एक रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है।मणिपुर में हिंसा फैलाने की साजिश रची जा रही है। मणिपुर में बकायदा हिंसा फैलाने के लिए महिला ब्रिगेड तैयार हुई है। कुकी आतंकी संगठनों ने महिला ब्रिगेड तैयार की है। उनको हथियार की ट्रेनिंग दी जा रही है।

न्यूज18 इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक मणिपुर में कांग्लीपाक नेशनल पार्टी (KNP), कुकी नेशनल फ्रंट (KNF) और यूनाइटेड पीपल पार्टी ऑफ़ कांग्लीपाक (UPPK) ने मणिपुर के कई इलाकों में हिंसा के लिए साजिश रची है। रिपोर्ट में बताया गया है कि यह अपनी आतंकी गतिविधियाँ फंड करने के लिए बाहर से आने वाले कामगारों से वसूली करना चाहते हैं। यह संगठन नेपाल और बिहार से मणिपुर पहुँचने वाले व्यापारियों से ₹1-1.5 लाख/महीने का वसूलने की साजिश रच चुके हैं। इसके अलावा यह सुरक्षाबलों की गतिविधियों पर की जासूसी भी कर रहे हैं।

रिपोर्ट में ये भी खुलासा हुआ है कि मणिपुर में 15 से 20 साल की लड़कियों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। मणिपुर में चल रही लड़कियों की ट्रेनिंग पूरे 45 दिनों की है। ट्रेनिंग के हर बैच में 50-50 लड़कियां को शामिल किया गया है। ये ट्रेनिंग सेंटर रहत शिविर में मणिपुर के याइथिबी लौकोल,थाना खोंगजाम, जिला काकचिंग में खेले गए हैं। ये ट्रेनिंग सरकार द्वारा बनाए गए राहत शिविरों में आयोजित किया जा रहा है।रिपोर्ट के मुताबिक लड़कियों का प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्हें सीधे संगठन में शामिल नहीं किया जाता है।

कुकी संगठनों ने यह सोच कर यह ट्रेनिंग दी थी कि यदि महिलाएँ सुरक्षाबलों पर हमला करेंगी तो वह वापस जवाब भी देने में हिचकिचाएँगे और बाद में विक्टिम कार्ड भी खेला जा सकेगा। दरअशल, इस तरह के हालात पहले बी पैदा हुए हैं। कई बार महिलाओं ने सुरक्षाबलों का रास्ता रोका है। 30 अप्रैल 2024 को भारतीय सेना अपने साथ वो हथियार और गोला बारूद लेकर जा रहे थे, जो उन्होंने बिष्णुपुर में कुछ वाहनों से जब्त किए थे। लेकिन, इस बीच रास्ते में महिलाओं का एक ग्रुप आया और काफिला रोककर 11 उपद्रवियों को रिहा कराया।

क्या AI के जरिए परमाणु हथियार कंट्रोल करना चाहता है चीन? ड्रैगन की इस चाल ने दुनिया को डराया

#china_refuses_to_sign_agreement_banning_ai_from_controlling_nuclear_weapons

आज के समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI मानवीय जीवन का सबसे बड़ा साथी बनता जा रहा। हालांकि हर चीज के दो पहलू होते हैं। एआ के भी फायदे और नुकसान दोनों हैं। नुकसान खासकर तब है, जब दुनिया के तमाम देशों के पास परमाणु हथियार हैं। अमेरिका, चीन समेत कई देश AI के सैन्य इस्तेमाल पर प्रयोग कर रहे हैं। बात यहां तक बढ़ी है कि अब AI के जरिए परमाणु हथियार कंट्रोल किए जाने का खतरा पैदा हो गया है।

परमाणु हथियारों को कंट्रोल करने में भी इसका उपयोग करने की संभावनाएं बढ़ रही हैं, जो मानव सभ्यता के लिए खतरा बन सकता है। परमाणु हथियार कैसी तबाही मचा सकते हैं, यह दुनिया ने उनके विकास के साथ ही 1945 में देख लिया था। जापान के नागासाकी और हिरोशिमा पर अमेरिका ने 6 और 9 अगस्त को परमाणु बम गिराए थे। वह दुनिया में परमाणु बमों के इस्तेमाल का पहला और अब तक का इकलौता वाकया है। हालांकि, बाद के दशकों में रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन, भारत समेत कई देशों ने परमाणु हथियार बनाने की क्षमता पा ली। ऐसे में दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली जंग के परमाणु युद्ध में बदलने का खतरा बरकरार लगातार बरकरार है।

इस खौफ से निपटने के लिए 100 से ज्‍यादा देशों ने तय क‍िया है क‍ि परमाणु बम को AI के कंट्रोल में नहीं रखा जाएगा, क्‍योंक‍ि इससे कभी भी महाविनाश हो सकता है। इसी कारण साउथ कोरिया में आयोजित REAIM सम्मेलन में परमाणु उपकरणों और हथियारों को कंट्रोल करने में AI का इस्तेमाल नहीं करने का आह्वान किया गया। इसे लेकर एक समझौता करने की कोशिश की गई, जिस पर सहमति जताने से चीन ने इंकार कर दिया है।

दक्ष‍िण कोर‍िया की राजधानी सियोल में हाल ही में एक बैठक का मकसद था, इस बात पर चर्चा करना क‍ि आर्मी और जंग के मैदान में AI कैसे और क‍ितना इस्‍तेमाल क‍िया जाए, इस पर निर्णय लेना। आर्मी में AI के इस्‍तेमाल पर ज्‍यादातर देशों की एक राय थी, लेकिन जब बात एटामिक बमों को AI के कंट्रोल में देने की आई तो चीन ने अपने कदम पीछे खींच ल‍िए। उससे इस पैक्‍ट पर सिग्‍नेचर करने से साफ मना कर दिया। ड्रैगन के इस चाल से पूरी दुनिया चिंता में पड़ गई है।

अभी तक दुनियाभर में सेनाएं AI का इस्तेमाल निगरानी, सर्विलांस और एनालिसिस के लिए करती आई हैं। इस बात पर आम सहमति सी रही कि परमाणु हथियार दागने का फैसला हमेशा इंसानों के हाथ में रहेगा। AFP की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी योजना है कि भविष्य में AI का उपयोग लक्ष्य चुनने के लिए किया जा सकता है, लेकिन अधिकांश देश अभी भी इस बात पर सहमत हैं कि लॉन्च का फैसला निर्णय मनुष्यों के हाथ में होना चाहिए। लेकिन चीन के साथ ऐसा नहीं है। जून में व्हाइट हाउस ने कहा था कि चीन ने परमाणु हथियारों के लॉन्च को कंट्रोल करने में AI की भूमिका को सीमित करने के अमेरिकी प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

चीन का इस समझौते से पीछे हटना कई सवाल खड़े कर रहा है। चीन बार-बार यह साबित कर चुका है कि वह आधुनिक तकनीकों में निवेश और अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के प्रति प्रतिबद्ध है। AI तकनीक के उपयोग से अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने की उसकी मंशा साफ दिख रही है। इस संदर्भ में चीन का AI संचालित सैन्य प्रणालियों में बढ़ती रुचि और इस समझौते से दूरी बनाना यह संकेत देता है कि वह AI के जरिए परमाणु हथियारों के नियंत्रण की संभावना को खारिज नहीं कर रहा है।

क्या AI के जरिए परमाणु हथियार कंट्रोल करना चाहता है चीन? ड्रैगन की इस चाल ने दुनिया को डराया

#china_refuses_to_sign_agreement_banning_ai_from_controlling_nuclear_weapons

आज के समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI मानवीय जीवन का सबसे बड़ा साथी बनता जा रहा। हालांकि हर चीज के दो पहलू होते हैं। एआ के भी फायदे और नुकसान दोनों हैं। नुकसान खासकर तब है, जब दुनिया के तमाम देशों के पास परमाणु हथियार हैं। अमेरिका, चीन समेत कई देश AI के सैन्य इस्तेमाल पर प्रयोग कर रहे हैं। बात यहां तक बढ़ी है कि अब AI के जरिए परमाणु हथियार कंट्रोल किए जाने का खतरा पैदा हो गया है।

परमाणु हथियारों को कंट्रोल करने में भी इसका उपयोग करने की संभावनाएं बढ़ रही हैं, जो मानव सभ्यता के लिए खतरा बन सकता है। परमाणु हथियार कैसी तबाही मचा सकते हैं, यह दुनिया ने उनके विकास के साथ ही 1945 में देख लिया था। जापान के नागासाकी और हिरोशिमा पर अमेरिका ने 6 और 9 अगस्त को परमाणु बम गिराए थे। वह दुनिया में परमाणु बमों के इस्तेमाल का पहला और अब तक का इकलौता वाकया है। हालांकि, बाद के दशकों में रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन, भारत समेत कई देशों ने परमाणु हथियार बनाने की क्षमता पा ली। ऐसे में दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली जंग के परमाणु युद्ध में बदलने का खतरा बरकरार लगातार बरकरार है।

इस खौफ से निपटने के लिए 100 से ज्‍यादा देशों ने तय क‍िया है क‍ि परमाणु बम को AI के कंट्रोल में नहीं रखा जाएगा, क्‍योंक‍ि इससे कभी भी महाविनाश हो सकता है। इसी कारण साउथ कोरिया में आयोजित REAIM सम्मेलन में परमाणु उपकरणों और हथियारों को कंट्रोल करने में AI का इस्तेमाल नहीं करने का आह्वान किया गया। इसे लेकर एक समझौता करने की कोशिश की गई, जिस पर सहमति जताने से चीन ने इंकार कर दिया है। 

दक्ष‍िण कोर‍िया की राजधानी सियोल में हाल ही में एक बैठक का मकसद था, इस बात पर चर्चा करना क‍ि आर्मी और जंग के मैदान में AI कैसे और क‍ितना इस्‍तेमाल क‍िया जाए, इस पर निर्णय लेना। आर्मी में AI के इस्‍तेमाल पर ज्‍यादातर देशों की एक राय थी, लेकिन जब बात एटामिक बमों को AI के कंट्रोल में देने की आई तो चीन ने अपने कदम पीछे खींच ल‍िए। उससे इस पैक्‍ट पर सिग्‍नेचर करने से साफ मना कर दिया। ड्रैगन के इस चाल से पूरी दुनिया चिंता में पड़ गई है।

अभी तक दुनियाभर में सेनाएं AI का इस्तेमाल निगरानी, सर्विलांस और एनालिसिस के लिए करती आई हैं। इस बात पर आम सहमति सी रही कि परमाणु हथियार दागने का फैसला हमेशा इंसानों के हाथ में रहेगा। AFP की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी योजना है कि भविष्य में AI का उपयोग लक्ष्य चुनने के लिए किया जा सकता है, लेकिन अधिकांश देश अभी भी इस बात पर सहमत हैं कि लॉन्च का फैसला निर्णय मनुष्यों के हाथ में होना चाहिए। लेकिन चीन के साथ ऐसा नहीं है। जून में व्हाइट हाउस ने कहा था कि चीन ने परमाणु हथियारों के लॉन्च को कंट्रोल करने में AI की भूमिका को सीमित करने के अमेरिकी प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

चीन का इस समझौते से पीछे हटना कई सवाल खड़े कर रहा है। चीन बार-बार यह साबित कर चुका है कि वह आधुनिक तकनीकों में निवेश और अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के प्रति प्रतिबद्ध है। AI तकनीक के उपयोग से अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने की उसकी मंशा साफ दिख रही है। इस संदर्भ में चीन का AI संचालित सैन्य प्रणालियों में बढ़ती रुचि और इस समझौते से दूरी बनाना यह संकेत देता है कि वह AI के जरिए परमाणु हथियारों के नियंत्रण की संभावना को खारिज नहीं कर रहा है।

तकनीक के युग में बदले युद्ध के तरीके, क्या सैनिकों की जगह हथियारों से लैस ड्रोन लड़ेंगे युद्ध?

#drone_are_the_weapons_of_the_future

आज यूरोप और मिडिल ईस्ट में संघर्ष की हालात है। एक तरफ रूस-यूक्रेन करीब ढाई साल से युद्ध लड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ इजराइल-हमास के बीच जंग जारी है। संघर्षों पर ध्यान दें तो अधिकतर हमलों में ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है।बीते कुछ महीनों में यूक्रेन ने रूस के भीतर लंबी दूरी तक हमले बढ़ा दिए हैं, वो सप्ताह में कई बार ड्रोन का इस्तेमाल कर रणनीतिक तौर पर अहम ठिकानों पर हमले कर रहा है। वो रूसी वायु सेना के ठिकानों, तेल और हथियारों के डिपो और उसके कमांड सेंटर्स को निशाना बना रहा है।यूक्रेनी कंपनियां अब सैकड़ों वन-वे (एक बार इस्तेमाल होने वाले) ड्रोन का उत्पादन कर रही हैं। यूक्रेन के एक टॉप कमांडर ने दावा किया है कि जंग की शुरुआत से लेकर अब तक रूस 14 हज़ार ड्रोन का इस्तेमाल कर चुका है।

वहीं दूसरी तरफ लगातार हमास और हिज्बुल्ला आतंकियों के ठिकानों पर ड्रोन से हमला कर रहा है। एक ड्रोन निगरानी और जासूसी करता है, तो दूसरे से हमला हो जाता है। कई बार तो एक ही ड्रोन से ये दोनों काम कर दिए जाते हैं। जिस ड्रोन से इजरायल ने निगरानी की. हमास आतंकियों की सुरंगों का पता लगाया, उसका नाम है एलबिट हर्मेस 450 (Elbit Hermes 450) ड्रोन। यह मीडियम साइज मल्टी पेलोड अनमैन्ड एरियल व्हीकल है। इसे लंबे समय वाले टैक्टिकल मिशन के लिए ही बनाया गया है। यह एक बार में कम से कम 20 घंटे तक उड़ान भर सकता है।

इन दोनों युद्दों पर गौर करें तो दुश्मन को नज़र आए बिना छिपकर वार करना अब युद्ध का यही तरीका बनता जा रहा है। ड्रोन, एक मानव रहित हथियार है। जिसके जरिए दुश्मन की जमीन पर कदम रखे बिना उसे ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सकता है। ड्रोन में इलेक्ट्रोऑप्टिकल, इंफ्रारेड सेंसर्स लगे हैं। जिनकी मदद से ये कम्यूनिकेशन और इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस, सिंथेटिक अपर्चर राडार, ग्राउंड मूविंग टारगेट इंडीकेशन, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर या हाइपरस्पेक्ट्रल सेंसर्स का इस्तेमाल करता है। ये ऐसी तकनीक हैं, जिनसे दुश्मन पाताल के अंदर कहीं भी छिपा हो, उसे ये खोज निकलते हैं।

वैसे ड्रोनों के इस्तेमाल का ये तरीका नया नहीं है। हां कह सकते हैं कि हाल के दशकों में इसी तरीके से जंग लड़े जा रहे हैं। 2019 में हूती लड़ाकों के ठिकानों से उड़े इन ड्रोन्स ने 1500 किलोमीटर दूर जाकर साउदी अरब में हमला किया। साउदी अरब की क्रूड ऑयल प्रोसेस करने वाले अबैकक पर हुए हमले में उन्हें पूरी तरह से तहस नहस कर डाला, लेकिन साउदी अरब का डिफेंस सिस्टम इन्हें डिटेक्ट नहीं कर सका। सउदी अरब में अमेरिकी पैट्रिओट -3 एयर डिफेंस सिस्टम लगा है, जो इन ड्रोन्स को डिटेक्ट करने में फेल हो गया। 2018 में भी हूती ने अबु धाबी एयरपोर्ट पर 3 हमले किए थे, इन हमलों में भी ड्रोन ही थे।

6 जनवरी 2018 को सीरीया पर इसी तरह का हमला हुआ , जो दूनिया का पहला ऐसा हमला था। जब अज्ञात जगह से आए हथियारों से लोडेड 13 ड्रोन्स ने सीरीया के हेमेमिन एयरबेस और टार्टस नवल बेस पर हमला किया था। इसके तीन महीने बाद रूस को भी ऐसे हमलों का सामना करना पड़ा था। एक के बाद एक तीन हमले, अप्रैल उसके बाद जून फिर अगस्त। इन हमलों में रूस ने कुल 47 ड्रोन्स को मार गिराया था।

2018 के अगस्त में वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मदुरो पर भी जो हमला हुआ, वो हथियारों से लैस ड्रोन से ही था। हालांकि राष्ट्रपति इस हमले में बच गए, लेकिन हथियार के तौर पर ड्रोन का इस्तोमाल किए जाने का खतरा बढ़ने की आशंका जतायी जाने लगी थी। जिसके बाद दुनिया के बड़े नेताओं की सुरक्षा में ड्रोन गन और बजूका जैसी बंदूकें शामिल की गई हैं। जो ड्रोन के हमले को पहले से ही मार गिराए।

युद्ध में इनका इस्तेमाल करने की शुरूआत सीआईए ने की, जब 2001 में तालीबान को निशाना बनाया गया। इसके बाद 15 सालों का कैंपन शुरू हुआ, जिसके बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान के इलाके में 400 से भी ज्यादा हमले हुए।

अमेरिका में ड्रोन का सालों से इस्तेमाल होता आ रहा है। ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि अमेरिका ड्रोन के जरिए सालों तक ओसामा बिन लादेन पर निगाहें बनाये हुए था और इसी सर्विलांस के जरिए 2011 में उसे मार गिराने में कामयाब रहा। ठीक इसी तरह अमेरिका ने 2015 में ड्रोन हमले में आईएसआईएस के आतंकी जिहादी जाॅन का भी काम तमाम किया था।

ये हमलावर ड्रोन शुरूआत में अमेरिका और इजराइल जेसै देशों के पास थे, जो तकनीक के मामले में आगे थे। बाद में चीन भी इसमें शामिल हो गया। चीन एक ऐसा देश है, जो अपने हथियार दूसरे देशों को बेचने की इच्छा रखता है। चीन ने अपने यहां बने ड्रोन्स को कई दूसरे देशों में बेचना शुरू किया और अब इस ड्रोन्स को तकनीक बदलकर हमलावर और आत्मधाती बनाया जा रहा है

ये ड्रोन्स ना केवल बहुत सस्ते हैं, बल्कि इनका रखरखाव भी आसान है। हथियारों से लोड दर्जन भर ड्रोन्स पर महज 1.5 लाख के करीब डॉलर खर्च कर अरबों का नुकसान किया जा सकता है।

दुश्मनों तो खाक में मिलाना हो तो ड्रोन्स अच्छे विकल्प साबित हो रहे हैं...पहले दुश्मनों की खुफिया जानकारी जुटाओ...फिर उन्हें मिट्टी में मिलाओं...इसका सबसे अच्छा उदाहरण ईरान है...जिसने ड्रोन की अत्याधुनिक तकनीक यमन के हूती विद्रोहियों को ट्रांसफर किया है....

जर्मनी में मिसाइलें तैनात करने को लेकर पुतिन ने अमेरिका को दी धमकी, जानें रूसी राष्ट्रपति ने क्या कहा
#putin_threatens_america_to_restart_indtermediate_range_nuclear_weapons
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रविवार को अमेरिका को परमाणु हमले की ताजा धमकी दी है। पुतिन ने कहा कि अगर वाशिंगटन जर्मनी में लंबी दूरी की मिसाइलें तैनात करता है तो वह अमेरिका तक मार करने वाली मध्यम दूरी के परमाणु हथियारों का उत्पादन फिर से शुरू कर देगा। यही नहीं, पुतिन ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि मिसाइलों के उत्पादन के साथ ही उनकी ऐसी जगहों पर तैनाती की जाएगी, जहां से पश्चिमी देशों को निशाना बनाया जा सके। बता दें कि इस महीने की शुरुआत में अमेरिका ने कहा था कि वह जर्मनी में साल 2026 से लंबी दूरी की मिसाइलों को तैनात करना शुरू कर देगा।

पुतिन ने रूसी नौसेना दिवस के मौके पर यह बात कही।सेंट पीटर्सबर्ग में रूसी नौसेना दिवस के अवसर पर दिए गए भाषण में पुतिन ने अमेरिका को चेतावनी दी कि इस कदम से शीत युद्ध शैली का मिसाइल संकट शुरू होने का जोखिम है। पुतिन ने कहा, 'अगर अमेरिका ऐसी योजनाओं को अंजाम देता है, तो हम मध्यम और कम दूरी की मारक क्षमताओं की तैनाती पर पहले अपनाए गए एकतरफा प्रतिबंध से खुद को मुक्त मानेंगे।' उन्होंने कहा, 'यह स्थिति यूरोप में अमेरिकी मध्यम दूरी की पर्शिंग मिसाइलों की तैनाती से संबंधित शीत युद्ध की घटनाओं की याद दिलाती है।'

रूसी राष्ट्रपति ने आगे दावा किया कि वाशिंगटन डेनमार्क और फिलीपींस को टाइफॉन मिसाइल सिस्टम हस्तांतरित करके तनाव बढ़ा रहा है। पुतिन ने कहा, 'ऐसी मिसाइलों के हमारे क्षेत्र में लक्ष्यों तक उड़ान का समय लगभग 10 मिनट होगा, जो भविष्य में परमाणु वारहेड से लैस हो सकती हैं।'
हमास से युद्ध के दौरान भारत ने हथियारों से की इजरायल की मदद, पूर्व राजदूत डैनियल कार्मन का बयान

#indiamayhelpisraelwith_weapons

भारत में इजरायल के पूर्व राजदूत डेनियल कार्मन ने भारत को लेकर बड़ा बयान दिया है।उन्होंने दावा किया है कि हमास से युद्ध के दौरान भारत ने हथियारों से इजरायल की मदद की है। उन्होंने ये भी कहा है कि भारत शायद इसलिए हथियारों की सप्लाई कर रहा है क्योंकि करगिल युद्ध के समय इजरायल ने भारत की सहायता की थी। इजराइल के पूर्व राजदूत डैनियल कार्मन के बयान के बाद ये सावल उठ रहे हैं कि क्या भारत इजराइल का एहसान चुका रहा है।हालांकि, अभी तक भारत की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया कि वो इजराइल को कोई भी हथियार दे रहा है।

डैनियल कार्मन 2014 से लेकर 2018 तक भारत में इजराइल के राजदूत थे। इजरायली मीडिया के साथ एक इंटरव्यू में डैनियल कार्मन ने कहा, इजराइल उन कुछ देशों में से एक था जिसने पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भारत को हथियार उपलब्ध कराए थे। भारतीय हमेशा हमें याद दिलाते हैं कि कारगिल युद्ध के दौरान इजराइल उनके साथ था। भारतीय इसे नहीं भूलते हैं और अब शायद वे इस एहसान चुका रहे हैं।

डैनियल की ये टिप्पणी ऐसे समय आई है, जब लगातार ऐसी खबरें आई हैं कि भारत ने इजरायल को ड्रोन और तोपखाने के गोलों की आपूर्ति की है क्योंकि हमास के खिलाफ आठ महीने से अधिक समय से जारी युद्ध के चलते इजरायल के पास हथियारों की कमी हो गई है।

कारगिल युद्ध में इजरायल ने की थी मदद

बता दें कि 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान इजराइल ने युद्ध सामग्री और ड्रोन सहित सैन्य आपूर्ति और उपकरण भारत को दिए थे। कारगिल वार के दौरान इजराइल ने भारत को मोर्टार समेत कई कई चीजें भेजी थी। ये ऐसा समय था जब बहुत कम देश भारत की मदद करने को तैयार थे, क्योंकि तब अमेरिका ने इजराइल और यूरोपीय देशों को कहा था कि आपको भारत को हथियार नहीं भेजने हैं और अगर भेजने भी हैं तो देरी से भेजो ताकि तब तक जंग खत्म हो जाए।लेकिन इजराइल ने अमेरिका के आदेश को मानने से इंकार कर दिया था। जो हथियार इजराइल को कुछ हफ्तों में भेजना था वो उसने कुछ ही दिन में भेज दिए।

इजराइली हथियारों की खरीद में टॉप पर भारत

भारत और इजराइल के बीच काफी पुराने रक्षा संबंध रहे हैं। मोदी सरकार बनने के बाद से इजराइल और भारत के रक्षा संबंधों काफी मजबूत हुए। मीडिया हाउस हारेट्ज की रिपोर्ट के मुताबिक इजराइली हथियारों को खरीदने वाले देशों में भारत टॉप पर है। 2019-2023 के बीच इजराइल के कुल डिफेंस एक्सपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी 37% थी। जंग के दौरान भारत ने भी हथियार मुहैया कराने में इजराइल की मदद की है। ‘द वायर’ की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है, कि अडानी डिफेंस एंड एयरोस्पेस और इजराइल के एल्बिट सिस्टम्स के बीच एक डील हुई है। इसके तहत 20 से अधिक हर्मीस 900 यूएवी/ड्रोन को भारत में तैयार कर इजराइल भेजा गया है। इसके अलावा जंगी विमानों के कई पुर्जे भी इजराइल को दिए गए हैं। सरकार के स्वामित्व वाली म्यूनिशन्स इंडिया लिमिटेड ने जनवरी 2024 में इजराइल को जंगी सामान निर्यात किया है।

अमेरिका ने इजराइल को दिया बड़ा झटका, राफा अभियान के बाद सैन्य सहायता रोकी

#us_admits_to_withholding_weapons_shipment_to_israel

अमेरिका की चेतावनी के बाद भी इजराइल ने मंगलवार को राफा पर आक्रमण कर दिया है। इजराइल ने इस एक्शन के बाद अपने खास दोस्त अमेरिका से दुश्मनी मोल ली है। अमेरिका ने इजराइल को दी जाने वाली सैन्य मदद रोक दी है।बताया जा रहा है कि गाजा के दक्षिणी इलाके में स्थित शहर राफा पर इजरायल के हमले को देखते हुए बाइडन प्रशासन ने यह फैसला लिया है। बाइडन प्रशासन चाहता है कि इजरायल राफा में पूर्ण अभियान चलाने से बचे जहां लाखों की तादाद में फलस्‍तीनी लोग शरण लिए हुए हैं। इससे पहले जब इजरायल ने अभियान शुरू किया तब गाजा के लोग मिस्र से लगे राफा बॉर्डर पर पहुंच गए थे। इस बॉर्डर पर इजरायल ने कब्‍जा कर लिया है और लगातार हमले कर रहा है।

अल अरेबिया मीडिया आउटलेट से बात करते हुए एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि राफा में अमेरिकी चिंताओं पर ध्यान न देने के बाद इज़राइल को किया जाने वाला हथियारों का निर्यात रोक दिया गया है। बाइडन प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा कि हम इजरायल को दिए जाने वाले हथियारों की सतर्कतापूर्वक समीक्षा कर रहे हैं, इसमें भी खासकर जिनका राफा में इस्‍तेमाल किया जा सकता है। उन्‍होंने कहा कि इस समीक्षा की वजह से ही हमने पिछले सप्‍ताह इजरायल को दिए जाने वाले 1000 किलो के बम की आपूर्ति को रोक दिया है। हम इन बेहद शक्तिशाली बमों के इस्‍तेमाल पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं। इसके इस्‍तेमाल का शहरी इलाकों में भयानक असर पड़ता है। हमने अभी इस बारे में कोई फैसला नहीं किया है कि आने वाले समय में कैसे हथियारों की श‍िपमेंट को लेकर आगे बढ़ना है।'

अमेरिकी सूत्रों का कहना है कि इन बमों के शिपमेंट को कम से कम दो सप्‍ताह के लिए टाल दिया गया है। इसमें बोइंग कंपनी का बनाया हुआ जॉइंट डायरेक्‍ट अटैक बम और स्‍माल डायामीटर बम भी शामिल है। अमेरिका ने इन बमों की आपूर्ति को ऐसे समय पर टाली है जब बाइडन सार्वजनिक रूप से इजरायल पर दबाव डाल रहे हैं कि वह राफा पर अभियान को बंद करे।व्हाइट हाउस की ओर से आपत्ति दर्ज कराए जाने के बावजूद इजराइली सरकार रफह पर आक्रमण की तैयारी करती रही है। इसी के बाद अप्रैल में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने इजराइल को भविष्य में सैन्य सहायता भेजने की समीक्षा शुरू कर दी थी।

हाल के हफ्तों में इजराइल की राफा पर आक्रमण की धमकी के बाद से ही अमेरिका ने सार्वजनिक और निजी तौर पर इस तरह के ऑपरेशन का विरोध किया है। अमेरिका शुरुआत से कहता आया है कि राफा में किसी भी ऑपरेशन से पहले आम नागरिकों की सुरक्षा के लिए एक खास प्लान की जरूरत है। बताया जा रहा है कि करीब 17 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनी राफा में हैं, इनमें से करीब 14 लाख वो लोग हैं जो उत्तरी गाजा से जान बचाने के लिए राफा आए हैं।

बता दें कि आतंकी संगठन हमास की ओर से पिछले साल सात अक्टूबर को इजराइल पर हमला किया गया था। इसके जवाब में इजराइल ने गाजा पट्टी पर आक्रमण शुरू कर दिया था।हमास से जंग के बीच अमेरिका ने इजराइल को भारी मात्रा में सैन्य सहायता मुहैया कराई है। लेकिन अब गोला बारूद की खेप को रोकने से इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन के बीच बढ़ता गतिरोध और खुलकर सामने आया गया है।

यूएन में आमने-सामने आए अमेरिका-रूस, अंतरिक्ष में परमाणु हथियारों की तैनाती का मुद्दा*
#issue_of_nuclear_weapons_in_space_us_russia_clash_in_un पूरी दुनिया पहले से ही दो युद्धों से प्रभावित है, एक तरफ रूस-यूक्रेन के बीज संघर्ष जारी है, तो वहीं इजराइल और हमास के बीच जंग जारी है। इस बीच दुनिया इन दिनों मध्‍यपूर्व में सैन्‍य टकराव के युद्ध में तब्‍दील होने की आशंका से जूझ रहा है। पिछले दिनों ईरान ने इजरायल पर ड्रोन और मिसाइल से हमला कर दिया था. इसके बाद इजरायल ने भी ईरान पर पलटवार करने का दावा किया था। आशंका जताई जा रही है कि इन दोनों देशों की बीच कभी भी युद्ध शुरू हो सकता है। इस बीच रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में बाहरी अंतरिक्ष संधि के प्रस्ताव को वीटो लगाकर रोक दिया। यह मसौदा प्रस्ताव जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका ने पेश किया था। इस मसौदे का उद्देश्य बाहरी अंतरिक्ष को हथियारों से मुक्त रखना था। मसौदे के समर्थन में 13 वोट पड़े, एक सदस्य - चीन ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया और सुरक्षा परिषद एक स्थाई सदस्य के रूप में, रूस ने वीटो किया। पिछले दिनों मीडिया रिपोर्ट में रूस की ओर से पृथ्‍वी की कक्षा में परमाणु हथियार तैनात करने की योजना बनाने की बात सामने आई थी। इस खतरे का खुलासा अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की इंटेलिजेंस कमेटी के रिपब्लिकन अध्यक्ष सीनेटर माइक टर्नर ने किया था। उन्होंने इसे अमेरिका के लिए एक गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा बताया था। जिसके बाद अमेरिका ने अंतरिक्ष में रूस के परमाणु हथियार को लेकर चेतावनी दी थी। अमेरिका ने बतााय कि रूस अंतरिक्ष में परमाणु हथियार तैनात करने की तैयारी में है। इसके बाद अमेरिका ने संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में इसे प्रतिबंधित करने का प्रस्‍ताव लाया। रूस ने इस प्रस्‍ताव पर वीटो कर दिया। अब वॉशिंगटन ने मॉस्‍को के इस कदम की कड़ी आलोचना की है। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने एक बयान जारी कर कहा, ‘जैसा कि हमने पहले नोट किया है, संयुक्त राज्य अमेरिका का आकलन है कि रूस परमाणु उपकरण ले जाने वाला एक नया उपग्रह विकसित कर रहा है। हमने राष्ट्रपति (व्लादिमीर) पुतिन को सार्वजनिक रूप से यह कहते सुना है कि रूस का अंतरिक्ष में परमाणु हथियार तैनात करने का कोई इरादा नहीं है। यदि ऐसा होता तो न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में रूस द्वारा प्रस्ताव पर वीटो नहीं किया गया होता।’ सुलिवन ने आगे कहा, ‘रूस ने अमेरिका और जापान द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को वीटो कर दिया। यह प्रस्‍ताव बाहरी अंतरिक्ष में किसी भी सदस्‍य देश द्वारा परमाणु हथियार तैनात न करने को लेकर था। उन्होंने बताया कि प्रस्ताव में सभी सदस्य देशों से विशेष रूप से कक्षा में स्थापित करने के लिए डिज़ाइन किए गए परमाणु हथियार विकसित न करने का भी आह्वान किया गया था। सुलिवन ने कहा, किसी देश द्वारा कक्षा में परमाणु हथियार रखना न केवल बाहरी अंतरिक्ष संधि का उल्लंघन होगा, बल्कि महत्वपूर्ण संचार, वैज्ञानिक, मौसम विज्ञान, कृषि, वाणिज्यिक और राष्ट्रीय सुरक्षा सेवाओं को खतरे में डाल देगा। अंतरिक्ष में तैनात हथियार क्या होते हैं स्पेस वेपन अंतरिक्ष युद्ध में इस्तेमाल होने वाले हथियार हैं। इनमें वे हथियार शामिल हैं, जो अंतरिक्ष में सैटेलाइट या स्पेस स्टेशन पर हमला कर सकते हैं। इनमें मुख्य तौर पर एंटी सैटेलाइट हथियार शामिल हैं। कुछ हथियार ऐसे भी होते हैं, जो अंतरिक्ष से पृथ्वी पर हमला कर सकते हैं या अंतरिक्ष से गुजरने वाली मिसाइलों को निष्क्रिय कर सकते हैं। इन्हें ही स्पेस आधारित वेपन कहा जाता है। अंतरिक्ष के सैन्यीकरण मुख्य रूप से शीत युद्ध के दौरान शुरू हुआ था। इस दौरान मुख्य रूप से दो प्रतिस्पर्धी महाशक्तियों अमेरिका और रूस ने ऐसे हथियारों का विकास किया था। आज भी दुनिया के कुछ देशों में ऐसे हथियारों का डेवलपमेंट जारी है। प्रस्ताव के पास होने पर क्या होता? अगर यह मसौदा पारित होकर प्रस्ताव बन जाता तो इसमें दुनिया के सभी देशों से, विशेष रूप से अंतरिक्ष क्षमताओं वाले देशों से, बाहरी अन्तरिक्ष के शान्तिपूर्ण इस्तेमाल के लिए सक्रिय योगदान करने और बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की किसी भी दौड़ को रोकने का आहवान किया जाता। बता दें 1967 की आउटर स्पेस संधि हस्ताक्षरकर्ताओं - जिसमें रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका भी शामिल है - को 'पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में परमाणु हथियार या किसी अन्य प्रकार के सामूहिक विनाश के हथियार ले जाने वाली वस्तुओं' को रखने से रोकती है।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने दी परमाणु हमले की चेतावनी, बोले- देश की संप्रभुता और स्वतंत्रता को जरा खतरा हुआ तो.

#russia_is_ready_to_use_nuclear_weapons

 रूस और यूक्रेन की जंग जारी है। पश्चिमी देश लगातार यूक्रेन की मदद कर रहे हैं। पश्चिमी देशों की मदद से यूक्रेन लगातार रूस पर जवाबी कार्रवाई कर रहा है। इस बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बड़ी चेतावनी दे डाली है। व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि अगर रूस की संप्रभुता या स्वतंत्रता को कोई खतरा होता है, तो उनका देश परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए तैयार है।

बुधवार तड़के जारी रूसी राज्य टेलीविजन के साथ एक इंटरव्यू में बोलते हुए पुतिन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अमेरिका किसी भी ऐसे तनाव से बचेगा जो परमाणु युद्ध को जन्म दे सकता है, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि रूस की परमाणु ताकतें इसके लिए तैयार हैं। पुतिन ने कहा कि अमेरिका समझता है कि अगर उसने रूसी क्षेत्र या यूक्रेन पर अमेरिकी सैनिकों को तैनाती की तो रूस इसे हस्तक्षेप के रूप में लेगा। पुतिन ने आगे कहा, रूस-अमेरिका संबंधों और रणनीतिक संयम के क्षेत्र में वहां कई एक्सपर्ट हैं। ऐसे में मुझे नहीं लगता है कि परमाणु युद्ध का कोई माहौल बन रहा है, लेकिन हम निश्चित रूप से तैयार हैं। 

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने कभी यूक्रेन में युद्धक्षेत्र में परमाणु हथियारों का उपयोग करने पर विचार किया है, पुतिन ने जवाब दिया कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने यह विश्वास भी जताया कि मॉस्को यूक्रेन में अपने लक्ष्यों को हासिल करेगा और बातचीत के लिए दरवाजे खुले रखे, इस बात पर जोर दिया कि किसी भी सौदे के लिए पश्चिम से ठोस गारंटी की आवश्यकता होगी।

पुतिन की परमाणु युद्ध की चेतावनी ऐसे समय में आई है, जब पश्चिम ने यूक्रेन पर बातचीत के लिए एक और प्रस्ताव दिया है। अमेरिका का कहना है कि पुतिन यूक्रेन पर गंभीर बातचीत के लिए तैयार नहीं हैं। 

रूस और यूक्रेन के बीच पिछले दो साल से भीषण युद्ध जारी है। पुतिन ने फरवरी 2022 में यूक्रेन के खिलाफ बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान शुरू किया था। दो साल से जारी अभियान में रूस ने यूक्रेन के लगभग पांचवें हिस्से पर नियंत्रण स्थापित किया है और तेजी से बढ़त बनाए हुए है। रूस को भी इस युद्ध से गंभीर नुकसान पहुंचा है। इस पूरी लड़ाई में रूस के हजारों सैनिक मारे गए हैं। अगर पश्चिमी देशों के आंकड़ों को देखे तो इस युद्ध में रूस के 3 लाख से ज्यादा सैनिक मारे जा चुके हैं। इस कारण रूस की सेना में सैनिको कि कमी पड़ रही है। उधर, अमेरिका सहित पश्चिमी देशों से यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक मदद मिल रही है। इससे यूक्रेन और हमलावर हो गया है। वहीं, पश्चिम इस बात से जूझ रहा है कि रूस के खिलाफ यूक्रेन को समर्थन कैसे जारी रखा जाए।

मणिपुर में लगातार लौटाए जा रहे लूटे गए हथियार, राज्यपाल की अपील के बाद हो रहा सरेंडर

#weaponsarebeingreturnedcontinuouslyinmanipur

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद से ही हथियारों का सरेंडर जारी है। मणिपुर के राज्यपाल अजय कुमार भल्ला की अपील के बाद लूटे गए हथियार और बड़ी मात्रा में गोला बारूद लौटाए जा रहे हैं। मणिपुर में 13 फरवरी को केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगाया था। जिसके बाद राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने लूटे गए हथियार और गोलियां लौटाने की अपील की थी।

बुधवार को पुलिस ने बताया कि 87 तरह के हथियार, गोला-बारूद और अलग-अलग सामान लोग स्वेच्छा से सरेंडर कर रहे हैं। इंफाल ईस्ट, बिश्नुपुर, थौबल, कांगपोकपी, जिरीबाम, चुराचांदपुर और इंफाल वेस्ट जिलों में हथियार सरेंडर किए गए हैं।

कौन से जिले से कितने हथियार सरेंडर हुए

• इंफाल वेस्ट: सबसे ज्यादा हथियार इंफाल वेस्ट जिले से सरेंडर किए गए हैं। इनमें 12 सीएमजी मैगजीन के साथ, दो 303 राइफल मैगजीन के साथ, दो SLR राइफल मैगजीन के साथ, चार 12 बोर सिंगल बैरल, एक आईईडी और गोला-बारूद शामिल हैं।

• जिरीबाम: पांच 12 बोर डबल बैरल, एक 9mm कार्बाइन मैगजीन के साथ, गोला-बारूद और ग्रेनेड सरेंडर किए गए।

• कांगपोकी: एक एके 47 राइफल 2 मैगजीन के साथ, एक .303 राइफल, एक Smith & Wesson रिवॉल्वर, एक .22 पिस्टल मैगजीन के साथ, एक सिंगल बैरल राइफल, तीन इम्प्रोवाइज्ड मॉर्टर, 9 मॉर्टर बम, ग्रेनेड और अन्य चीजें सरेंडर किए गए।

• बिश्नुपुर: 6 SBBL गन , एक राइफल, 3 DBBL, एक .303 राइफल मैगजीन के साथ, एक कार्बाइन SMG वन मैगजीन के साथ और 15 लाइव राउंड, गोला-बारूद और अन्य सामग्री सरेंडर किए गए हैं।

• थौबल: एक सब मशीन गन 9एमएम कार्बाइन 1A मैगजीन के साथ, एक रॉयट गन और अन्य सामग्री सरेंडर किए गए हैं।

• इंफाल ईस्ट: 2 कार्बाइन, एक एसएलआर दो मैगजीन के साथ, एक लाइव राउंड, 2 लोकल कार्बाइन मैगजीन, 4 इन्सास राइफल मैगजीन, बड़ी संख्या में गोला-बारूद सरेंडर की गई।

राज्यपाल की अपील का असर

इससे पहले राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने लोगों से लूटे गए और अवैध रूप से रखे गए हथियारों को 7 दिन के भीतर स्वेच्छा से पुलिस के सुपुर्द करने की 20 फरवरी को अपील की थी। इसके साथ ही गवर्नर ने यह आश्वासन भी दिया था कि इस अवधि के दौरान हथियार छोड़ने वालों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। मणिपुर के मुख्य सचिव पीके सिंह ने रविवार को कहा था कि अगर कोई हथियार त्यागना चाहता है तो लूटे गए और अवैध रूप से रखे गए हथियारों को स्वेच्छा से पुलिस के सुपुर्द करने के लिए दिया गया 7 दिन का समय पर्याप्त है।

13 फरवरी को मणिपुर में लगा था राष्ट्रपति शासन

बता दें कि मणिपुर में पिछले 2 साल से मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जातीय संघर्ष चल रहा है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह और उनके कैबिनेट मंत्रियों ने 9 फरवरी को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। बीरेन सिंह पर राज्य में 21 महीने से जारी हिंसा के चलते काफी दबाव था। मणिपुर में नेतृत्व संकट के बीच कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की थी। जिसके बाद केंद्र सरकार ने 13 फरवरी को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था।

मणिपुर में कैसे थमेगी हिंसा? तैयार की जा रही महिला ब्रिगेड, दी जा रही हथियार चलाने की ट्रेनिंग

#manipur_militants_trained_women_brigades_for_firing_weapons

मणिपुर एक बार फिर हिंसा की आग में झुलस रहा है। कुछ दिनों पहले मैतेई समुदाय की महिलाओं और बच्चों के शव मिलने के बाद राज्य में हिंसा भड़क गई। हत्या और आगजनी की घटनाओं से मणिपुर उबल रहा है। इस हिंसा से पूरे राज्य में तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है। इस बीच एक रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है।मणिपुर में हिंसा फैलाने की साजिश रची जा रही है। मणिपुर में बकायदा हिंसा फैलाने के लिए महिला ब्रिगेड तैयार हुई है। कुकी आतंकी संगठनों ने महिला ब्रिगेड तैयार की है। उनको हथियार की ट्रेनिंग दी जा रही है।

न्यूज18 इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक मणिपुर में कांग्लीपाक नेशनल पार्टी (KNP), कुकी नेशनल फ्रंट (KNF) और यूनाइटेड पीपल पार्टी ऑफ़ कांग्लीपाक (UPPK) ने मणिपुर के कई इलाकों में हिंसा के लिए साजिश रची है। रिपोर्ट में बताया गया है कि यह अपनी आतंकी गतिविधियाँ फंड करने के लिए बाहर से आने वाले कामगारों से वसूली करना चाहते हैं। यह संगठन नेपाल और बिहार से मणिपुर पहुँचने वाले व्यापारियों से ₹1-1.5 लाख/महीने का वसूलने की साजिश रच चुके हैं। इसके अलावा यह सुरक्षाबलों की गतिविधियों पर की जासूसी भी कर रहे हैं।

रिपोर्ट में ये भी खुलासा हुआ है कि मणिपुर में 15 से 20 साल की लड़कियों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। मणिपुर में चल रही लड़कियों की ट्रेनिंग पूरे 45 दिनों की है। ट्रेनिंग के हर बैच में 50-50 लड़कियां को शामिल किया गया है। ये ट्रेनिंग सेंटर रहत शिविर में मणिपुर के याइथिबी लौकोल,थाना खोंगजाम, जिला काकचिंग में खेले गए हैं। ये ट्रेनिंग सरकार द्वारा बनाए गए राहत शिविरों में आयोजित किया जा रहा है।रिपोर्ट के मुताबिक लड़कियों का प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्हें सीधे संगठन में शामिल नहीं किया जाता है।

कुकी संगठनों ने यह सोच कर यह ट्रेनिंग दी थी कि यदि महिलाएँ सुरक्षाबलों पर हमला करेंगी तो वह वापस जवाब भी देने में हिचकिचाएँगे और बाद में विक्टिम कार्ड भी खेला जा सकेगा। दरअशल, इस तरह के हालात पहले बी पैदा हुए हैं। कई बार महिलाओं ने सुरक्षाबलों का रास्ता रोका है। 30 अप्रैल 2024 को भारतीय सेना अपने साथ वो हथियार और गोला बारूद लेकर जा रहे थे, जो उन्होंने बिष्णुपुर में कुछ वाहनों से जब्त किए थे। लेकिन, इस बीच रास्ते में महिलाओं का एक ग्रुप आया और काफिला रोककर 11 उपद्रवियों को रिहा कराया।

क्या AI के जरिए परमाणु हथियार कंट्रोल करना चाहता है चीन? ड्रैगन की इस चाल ने दुनिया को डराया

#china_refuses_to_sign_agreement_banning_ai_from_controlling_nuclear_weapons

आज के समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI मानवीय जीवन का सबसे बड़ा साथी बनता जा रहा। हालांकि हर चीज के दो पहलू होते हैं। एआ के भी फायदे और नुकसान दोनों हैं। नुकसान खासकर तब है, जब दुनिया के तमाम देशों के पास परमाणु हथियार हैं। अमेरिका, चीन समेत कई देश AI के सैन्य इस्तेमाल पर प्रयोग कर रहे हैं। बात यहां तक बढ़ी है कि अब AI के जरिए परमाणु हथियार कंट्रोल किए जाने का खतरा पैदा हो गया है।

परमाणु हथियारों को कंट्रोल करने में भी इसका उपयोग करने की संभावनाएं बढ़ रही हैं, जो मानव सभ्यता के लिए खतरा बन सकता है। परमाणु हथियार कैसी तबाही मचा सकते हैं, यह दुनिया ने उनके विकास के साथ ही 1945 में देख लिया था। जापान के नागासाकी और हिरोशिमा पर अमेरिका ने 6 और 9 अगस्त को परमाणु बम गिराए थे। वह दुनिया में परमाणु बमों के इस्तेमाल का पहला और अब तक का इकलौता वाकया है। हालांकि, बाद के दशकों में रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन, भारत समेत कई देशों ने परमाणु हथियार बनाने की क्षमता पा ली। ऐसे में दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली जंग के परमाणु युद्ध में बदलने का खतरा बरकरार लगातार बरकरार है।

इस खौफ से निपटने के लिए 100 से ज्‍यादा देशों ने तय क‍िया है क‍ि परमाणु बम को AI के कंट्रोल में नहीं रखा जाएगा, क्‍योंक‍ि इससे कभी भी महाविनाश हो सकता है। इसी कारण साउथ कोरिया में आयोजित REAIM सम्मेलन में परमाणु उपकरणों और हथियारों को कंट्रोल करने में AI का इस्तेमाल नहीं करने का आह्वान किया गया। इसे लेकर एक समझौता करने की कोशिश की गई, जिस पर सहमति जताने से चीन ने इंकार कर दिया है।

दक्ष‍िण कोर‍िया की राजधानी सियोल में हाल ही में एक बैठक का मकसद था, इस बात पर चर्चा करना क‍ि आर्मी और जंग के मैदान में AI कैसे और क‍ितना इस्‍तेमाल क‍िया जाए, इस पर निर्णय लेना। आर्मी में AI के इस्‍तेमाल पर ज्‍यादातर देशों की एक राय थी, लेकिन जब बात एटामिक बमों को AI के कंट्रोल में देने की आई तो चीन ने अपने कदम पीछे खींच ल‍िए। उससे इस पैक्‍ट पर सिग्‍नेचर करने से साफ मना कर दिया। ड्रैगन के इस चाल से पूरी दुनिया चिंता में पड़ गई है।

अभी तक दुनियाभर में सेनाएं AI का इस्तेमाल निगरानी, सर्विलांस और एनालिसिस के लिए करती आई हैं। इस बात पर आम सहमति सी रही कि परमाणु हथियार दागने का फैसला हमेशा इंसानों के हाथ में रहेगा। AFP की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी योजना है कि भविष्य में AI का उपयोग लक्ष्य चुनने के लिए किया जा सकता है, लेकिन अधिकांश देश अभी भी इस बात पर सहमत हैं कि लॉन्च का फैसला निर्णय मनुष्यों के हाथ में होना चाहिए। लेकिन चीन के साथ ऐसा नहीं है। जून में व्हाइट हाउस ने कहा था कि चीन ने परमाणु हथियारों के लॉन्च को कंट्रोल करने में AI की भूमिका को सीमित करने के अमेरिकी प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

चीन का इस समझौते से पीछे हटना कई सवाल खड़े कर रहा है। चीन बार-बार यह साबित कर चुका है कि वह आधुनिक तकनीकों में निवेश और अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के प्रति प्रतिबद्ध है। AI तकनीक के उपयोग से अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने की उसकी मंशा साफ दिख रही है। इस संदर्भ में चीन का AI संचालित सैन्य प्रणालियों में बढ़ती रुचि और इस समझौते से दूरी बनाना यह संकेत देता है कि वह AI के जरिए परमाणु हथियारों के नियंत्रण की संभावना को खारिज नहीं कर रहा है।

क्या AI के जरिए परमाणु हथियार कंट्रोल करना चाहता है चीन? ड्रैगन की इस चाल ने दुनिया को डराया

#china_refuses_to_sign_agreement_banning_ai_from_controlling_nuclear_weapons

आज के समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI मानवीय जीवन का सबसे बड़ा साथी बनता जा रहा। हालांकि हर चीज के दो पहलू होते हैं। एआ के भी फायदे और नुकसान दोनों हैं। नुकसान खासकर तब है, जब दुनिया के तमाम देशों के पास परमाणु हथियार हैं। अमेरिका, चीन समेत कई देश AI के सैन्य इस्तेमाल पर प्रयोग कर रहे हैं। बात यहां तक बढ़ी है कि अब AI के जरिए परमाणु हथियार कंट्रोल किए जाने का खतरा पैदा हो गया है।

परमाणु हथियारों को कंट्रोल करने में भी इसका उपयोग करने की संभावनाएं बढ़ रही हैं, जो मानव सभ्यता के लिए खतरा बन सकता है। परमाणु हथियार कैसी तबाही मचा सकते हैं, यह दुनिया ने उनके विकास के साथ ही 1945 में देख लिया था। जापान के नागासाकी और हिरोशिमा पर अमेरिका ने 6 और 9 अगस्त को परमाणु बम गिराए थे। वह दुनिया में परमाणु बमों के इस्तेमाल का पहला और अब तक का इकलौता वाकया है। हालांकि, बाद के दशकों में रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन, भारत समेत कई देशों ने परमाणु हथियार बनाने की क्षमता पा ली। ऐसे में दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली जंग के परमाणु युद्ध में बदलने का खतरा बरकरार लगातार बरकरार है।

इस खौफ से निपटने के लिए 100 से ज्‍यादा देशों ने तय क‍िया है क‍ि परमाणु बम को AI के कंट्रोल में नहीं रखा जाएगा, क्‍योंक‍ि इससे कभी भी महाविनाश हो सकता है। इसी कारण साउथ कोरिया में आयोजित REAIM सम्मेलन में परमाणु उपकरणों और हथियारों को कंट्रोल करने में AI का इस्तेमाल नहीं करने का आह्वान किया गया। इसे लेकर एक समझौता करने की कोशिश की गई, जिस पर सहमति जताने से चीन ने इंकार कर दिया है। 

दक्ष‍िण कोर‍िया की राजधानी सियोल में हाल ही में एक बैठक का मकसद था, इस बात पर चर्चा करना क‍ि आर्मी और जंग के मैदान में AI कैसे और क‍ितना इस्‍तेमाल क‍िया जाए, इस पर निर्णय लेना। आर्मी में AI के इस्‍तेमाल पर ज्‍यादातर देशों की एक राय थी, लेकिन जब बात एटामिक बमों को AI के कंट्रोल में देने की आई तो चीन ने अपने कदम पीछे खींच ल‍िए। उससे इस पैक्‍ट पर सिग्‍नेचर करने से साफ मना कर दिया। ड्रैगन के इस चाल से पूरी दुनिया चिंता में पड़ गई है।

अभी तक दुनियाभर में सेनाएं AI का इस्तेमाल निगरानी, सर्विलांस और एनालिसिस के लिए करती आई हैं। इस बात पर आम सहमति सी रही कि परमाणु हथियार दागने का फैसला हमेशा इंसानों के हाथ में रहेगा। AFP की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी योजना है कि भविष्य में AI का उपयोग लक्ष्य चुनने के लिए किया जा सकता है, लेकिन अधिकांश देश अभी भी इस बात पर सहमत हैं कि लॉन्च का फैसला निर्णय मनुष्यों के हाथ में होना चाहिए। लेकिन चीन के साथ ऐसा नहीं है। जून में व्हाइट हाउस ने कहा था कि चीन ने परमाणु हथियारों के लॉन्च को कंट्रोल करने में AI की भूमिका को सीमित करने के अमेरिकी प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

चीन का इस समझौते से पीछे हटना कई सवाल खड़े कर रहा है। चीन बार-बार यह साबित कर चुका है कि वह आधुनिक तकनीकों में निवेश और अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के प्रति प्रतिबद्ध है। AI तकनीक के उपयोग से अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने की उसकी मंशा साफ दिख रही है। इस संदर्भ में चीन का AI संचालित सैन्य प्रणालियों में बढ़ती रुचि और इस समझौते से दूरी बनाना यह संकेत देता है कि वह AI के जरिए परमाणु हथियारों के नियंत्रण की संभावना को खारिज नहीं कर रहा है।

तकनीक के युग में बदले युद्ध के तरीके, क्या सैनिकों की जगह हथियारों से लैस ड्रोन लड़ेंगे युद्ध?

#drone_are_the_weapons_of_the_future

आज यूरोप और मिडिल ईस्ट में संघर्ष की हालात है। एक तरफ रूस-यूक्रेन करीब ढाई साल से युद्ध लड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ इजराइल-हमास के बीच जंग जारी है। संघर्षों पर ध्यान दें तो अधिकतर हमलों में ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है।बीते कुछ महीनों में यूक्रेन ने रूस के भीतर लंबी दूरी तक हमले बढ़ा दिए हैं, वो सप्ताह में कई बार ड्रोन का इस्तेमाल कर रणनीतिक तौर पर अहम ठिकानों पर हमले कर रहा है। वो रूसी वायु सेना के ठिकानों, तेल और हथियारों के डिपो और उसके कमांड सेंटर्स को निशाना बना रहा है।यूक्रेनी कंपनियां अब सैकड़ों वन-वे (एक बार इस्तेमाल होने वाले) ड्रोन का उत्पादन कर रही हैं। यूक्रेन के एक टॉप कमांडर ने दावा किया है कि जंग की शुरुआत से लेकर अब तक रूस 14 हज़ार ड्रोन का इस्तेमाल कर चुका है।

वहीं दूसरी तरफ लगातार हमास और हिज्बुल्ला आतंकियों के ठिकानों पर ड्रोन से हमला कर रहा है। एक ड्रोन निगरानी और जासूसी करता है, तो दूसरे से हमला हो जाता है। कई बार तो एक ही ड्रोन से ये दोनों काम कर दिए जाते हैं। जिस ड्रोन से इजरायल ने निगरानी की. हमास आतंकियों की सुरंगों का पता लगाया, उसका नाम है एलबिट हर्मेस 450 (Elbit Hermes 450) ड्रोन। यह मीडियम साइज मल्टी पेलोड अनमैन्ड एरियल व्हीकल है। इसे लंबे समय वाले टैक्टिकल मिशन के लिए ही बनाया गया है। यह एक बार में कम से कम 20 घंटे तक उड़ान भर सकता है।

इन दोनों युद्दों पर गौर करें तो दुश्मन को नज़र आए बिना छिपकर वार करना अब युद्ध का यही तरीका बनता जा रहा है। ड्रोन, एक मानव रहित हथियार है। जिसके जरिए दुश्मन की जमीन पर कदम रखे बिना उसे ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सकता है। ड्रोन में इलेक्ट्रोऑप्टिकल, इंफ्रारेड सेंसर्स लगे हैं। जिनकी मदद से ये कम्यूनिकेशन और इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस, सिंथेटिक अपर्चर राडार, ग्राउंड मूविंग टारगेट इंडीकेशन, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर या हाइपरस्पेक्ट्रल सेंसर्स का इस्तेमाल करता है। ये ऐसी तकनीक हैं, जिनसे दुश्मन पाताल के अंदर कहीं भी छिपा हो, उसे ये खोज निकलते हैं।

वैसे ड्रोनों के इस्तेमाल का ये तरीका नया नहीं है। हां कह सकते हैं कि हाल के दशकों में इसी तरीके से जंग लड़े जा रहे हैं। 2019 में हूती लड़ाकों के ठिकानों से उड़े इन ड्रोन्स ने 1500 किलोमीटर दूर जाकर साउदी अरब में हमला किया। साउदी अरब की क्रूड ऑयल प्रोसेस करने वाले अबैकक पर हुए हमले में उन्हें पूरी तरह से तहस नहस कर डाला, लेकिन साउदी अरब का डिफेंस सिस्टम इन्हें डिटेक्ट नहीं कर सका। सउदी अरब में अमेरिकी पैट्रिओट -3 एयर डिफेंस सिस्टम लगा है, जो इन ड्रोन्स को डिटेक्ट करने में फेल हो गया। 2018 में भी हूती ने अबु धाबी एयरपोर्ट पर 3 हमले किए थे, इन हमलों में भी ड्रोन ही थे।

6 जनवरी 2018 को सीरीया पर इसी तरह का हमला हुआ , जो दूनिया का पहला ऐसा हमला था। जब अज्ञात जगह से आए हथियारों से लोडेड 13 ड्रोन्स ने सीरीया के हेमेमिन एयरबेस और टार्टस नवल बेस पर हमला किया था। इसके तीन महीने बाद रूस को भी ऐसे हमलों का सामना करना पड़ा था। एक के बाद एक तीन हमले, अप्रैल उसके बाद जून फिर अगस्त। इन हमलों में रूस ने कुल 47 ड्रोन्स को मार गिराया था।

2018 के अगस्त में वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मदुरो पर भी जो हमला हुआ, वो हथियारों से लैस ड्रोन से ही था। हालांकि राष्ट्रपति इस हमले में बच गए, लेकिन हथियार के तौर पर ड्रोन का इस्तोमाल किए जाने का खतरा बढ़ने की आशंका जतायी जाने लगी थी। जिसके बाद दुनिया के बड़े नेताओं की सुरक्षा में ड्रोन गन और बजूका जैसी बंदूकें शामिल की गई हैं। जो ड्रोन के हमले को पहले से ही मार गिराए।

युद्ध में इनका इस्तेमाल करने की शुरूआत सीआईए ने की, जब 2001 में तालीबान को निशाना बनाया गया। इसके बाद 15 सालों का कैंपन शुरू हुआ, जिसके बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान के इलाके में 400 से भी ज्यादा हमले हुए।

अमेरिका में ड्रोन का सालों से इस्तेमाल होता आ रहा है। ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि अमेरिका ड्रोन के जरिए सालों तक ओसामा बिन लादेन पर निगाहें बनाये हुए था और इसी सर्विलांस के जरिए 2011 में उसे मार गिराने में कामयाब रहा। ठीक इसी तरह अमेरिका ने 2015 में ड्रोन हमले में आईएसआईएस के आतंकी जिहादी जाॅन का भी काम तमाम किया था।

ये हमलावर ड्रोन शुरूआत में अमेरिका और इजराइल जेसै देशों के पास थे, जो तकनीक के मामले में आगे थे। बाद में चीन भी इसमें शामिल हो गया। चीन एक ऐसा देश है, जो अपने हथियार दूसरे देशों को बेचने की इच्छा रखता है। चीन ने अपने यहां बने ड्रोन्स को कई दूसरे देशों में बेचना शुरू किया और अब इस ड्रोन्स को तकनीक बदलकर हमलावर और आत्मधाती बनाया जा रहा है

ये ड्रोन्स ना केवल बहुत सस्ते हैं, बल्कि इनका रखरखाव भी आसान है। हथियारों से लोड दर्जन भर ड्रोन्स पर महज 1.5 लाख के करीब डॉलर खर्च कर अरबों का नुकसान किया जा सकता है।

दुश्मनों तो खाक में मिलाना हो तो ड्रोन्स अच्छे विकल्प साबित हो रहे हैं...पहले दुश्मनों की खुफिया जानकारी जुटाओ...फिर उन्हें मिट्टी में मिलाओं...इसका सबसे अच्छा उदाहरण ईरान है...जिसने ड्रोन की अत्याधुनिक तकनीक यमन के हूती विद्रोहियों को ट्रांसफर किया है....

जर्मनी में मिसाइलें तैनात करने को लेकर पुतिन ने अमेरिका को दी धमकी, जानें रूसी राष्ट्रपति ने क्या कहा
#putin_threatens_america_to_restart_indtermediate_range_nuclear_weapons
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रविवार को अमेरिका को परमाणु हमले की ताजा धमकी दी है। पुतिन ने कहा कि अगर वाशिंगटन जर्मनी में लंबी दूरी की मिसाइलें तैनात करता है तो वह अमेरिका तक मार करने वाली मध्यम दूरी के परमाणु हथियारों का उत्पादन फिर से शुरू कर देगा। यही नहीं, पुतिन ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि मिसाइलों के उत्पादन के साथ ही उनकी ऐसी जगहों पर तैनाती की जाएगी, जहां से पश्चिमी देशों को निशाना बनाया जा सके। बता दें कि इस महीने की शुरुआत में अमेरिका ने कहा था कि वह जर्मनी में साल 2026 से लंबी दूरी की मिसाइलों को तैनात करना शुरू कर देगा।

पुतिन ने रूसी नौसेना दिवस के मौके पर यह बात कही।सेंट पीटर्सबर्ग में रूसी नौसेना दिवस के अवसर पर दिए गए भाषण में पुतिन ने अमेरिका को चेतावनी दी कि इस कदम से शीत युद्ध शैली का मिसाइल संकट शुरू होने का जोखिम है। पुतिन ने कहा, 'अगर अमेरिका ऐसी योजनाओं को अंजाम देता है, तो हम मध्यम और कम दूरी की मारक क्षमताओं की तैनाती पर पहले अपनाए गए एकतरफा प्रतिबंध से खुद को मुक्त मानेंगे।' उन्होंने कहा, 'यह स्थिति यूरोप में अमेरिकी मध्यम दूरी की पर्शिंग मिसाइलों की तैनाती से संबंधित शीत युद्ध की घटनाओं की याद दिलाती है।'

रूसी राष्ट्रपति ने आगे दावा किया कि वाशिंगटन डेनमार्क और फिलीपींस को टाइफॉन मिसाइल सिस्टम हस्तांतरित करके तनाव बढ़ा रहा है। पुतिन ने कहा, 'ऐसी मिसाइलों के हमारे क्षेत्र में लक्ष्यों तक उड़ान का समय लगभग 10 मिनट होगा, जो भविष्य में परमाणु वारहेड से लैस हो सकती हैं।'
हमास से युद्ध के दौरान भारत ने हथियारों से की इजरायल की मदद, पूर्व राजदूत डैनियल कार्मन का बयान

#indiamayhelpisraelwith_weapons

भारत में इजरायल के पूर्व राजदूत डेनियल कार्मन ने भारत को लेकर बड़ा बयान दिया है।उन्होंने दावा किया है कि हमास से युद्ध के दौरान भारत ने हथियारों से इजरायल की मदद की है। उन्होंने ये भी कहा है कि भारत शायद इसलिए हथियारों की सप्लाई कर रहा है क्योंकि करगिल युद्ध के समय इजरायल ने भारत की सहायता की थी। इजराइल के पूर्व राजदूत डैनियल कार्मन के बयान के बाद ये सावल उठ रहे हैं कि क्या भारत इजराइल का एहसान चुका रहा है।हालांकि, अभी तक भारत की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया कि वो इजराइल को कोई भी हथियार दे रहा है।

डैनियल कार्मन 2014 से लेकर 2018 तक भारत में इजराइल के राजदूत थे। इजरायली मीडिया के साथ एक इंटरव्यू में डैनियल कार्मन ने कहा, इजराइल उन कुछ देशों में से एक था जिसने पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भारत को हथियार उपलब्ध कराए थे। भारतीय हमेशा हमें याद दिलाते हैं कि कारगिल युद्ध के दौरान इजराइल उनके साथ था। भारतीय इसे नहीं भूलते हैं और अब शायद वे इस एहसान चुका रहे हैं।

डैनियल की ये टिप्पणी ऐसे समय आई है, जब लगातार ऐसी खबरें आई हैं कि भारत ने इजरायल को ड्रोन और तोपखाने के गोलों की आपूर्ति की है क्योंकि हमास के खिलाफ आठ महीने से अधिक समय से जारी युद्ध के चलते इजरायल के पास हथियारों की कमी हो गई है।

कारगिल युद्ध में इजरायल ने की थी मदद

बता दें कि 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान इजराइल ने युद्ध सामग्री और ड्रोन सहित सैन्य आपूर्ति और उपकरण भारत को दिए थे। कारगिल वार के दौरान इजराइल ने भारत को मोर्टार समेत कई कई चीजें भेजी थी। ये ऐसा समय था जब बहुत कम देश भारत की मदद करने को तैयार थे, क्योंकि तब अमेरिका ने इजराइल और यूरोपीय देशों को कहा था कि आपको भारत को हथियार नहीं भेजने हैं और अगर भेजने भी हैं तो देरी से भेजो ताकि तब तक जंग खत्म हो जाए।लेकिन इजराइल ने अमेरिका के आदेश को मानने से इंकार कर दिया था। जो हथियार इजराइल को कुछ हफ्तों में भेजना था वो उसने कुछ ही दिन में भेज दिए।

इजराइली हथियारों की खरीद में टॉप पर भारत

भारत और इजराइल के बीच काफी पुराने रक्षा संबंध रहे हैं। मोदी सरकार बनने के बाद से इजराइल और भारत के रक्षा संबंधों काफी मजबूत हुए। मीडिया हाउस हारेट्ज की रिपोर्ट के मुताबिक इजराइली हथियारों को खरीदने वाले देशों में भारत टॉप पर है। 2019-2023 के बीच इजराइल के कुल डिफेंस एक्सपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी 37% थी। जंग के दौरान भारत ने भी हथियार मुहैया कराने में इजराइल की मदद की है। ‘द वायर’ की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है, कि अडानी डिफेंस एंड एयरोस्पेस और इजराइल के एल्बिट सिस्टम्स के बीच एक डील हुई है। इसके तहत 20 से अधिक हर्मीस 900 यूएवी/ड्रोन को भारत में तैयार कर इजराइल भेजा गया है। इसके अलावा जंगी विमानों के कई पुर्जे भी इजराइल को दिए गए हैं। सरकार के स्वामित्व वाली म्यूनिशन्स इंडिया लिमिटेड ने जनवरी 2024 में इजराइल को जंगी सामान निर्यात किया है।

अमेरिका ने इजराइल को दिया बड़ा झटका, राफा अभियान के बाद सैन्य सहायता रोकी

#us_admits_to_withholding_weapons_shipment_to_israel

अमेरिका की चेतावनी के बाद भी इजराइल ने मंगलवार को राफा पर आक्रमण कर दिया है। इजराइल ने इस एक्शन के बाद अपने खास दोस्त अमेरिका से दुश्मनी मोल ली है। अमेरिका ने इजराइल को दी जाने वाली सैन्य मदद रोक दी है।बताया जा रहा है कि गाजा के दक्षिणी इलाके में स्थित शहर राफा पर इजरायल के हमले को देखते हुए बाइडन प्रशासन ने यह फैसला लिया है। बाइडन प्रशासन चाहता है कि इजरायल राफा में पूर्ण अभियान चलाने से बचे जहां लाखों की तादाद में फलस्‍तीनी लोग शरण लिए हुए हैं। इससे पहले जब इजरायल ने अभियान शुरू किया तब गाजा के लोग मिस्र से लगे राफा बॉर्डर पर पहुंच गए थे। इस बॉर्डर पर इजरायल ने कब्‍जा कर लिया है और लगातार हमले कर रहा है।

अल अरेबिया मीडिया आउटलेट से बात करते हुए एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि राफा में अमेरिकी चिंताओं पर ध्यान न देने के बाद इज़राइल को किया जाने वाला हथियारों का निर्यात रोक दिया गया है। बाइडन प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा कि हम इजरायल को दिए जाने वाले हथियारों की सतर्कतापूर्वक समीक्षा कर रहे हैं, इसमें भी खासकर जिनका राफा में इस्‍तेमाल किया जा सकता है। उन्‍होंने कहा कि इस समीक्षा की वजह से ही हमने पिछले सप्‍ताह इजरायल को दिए जाने वाले 1000 किलो के बम की आपूर्ति को रोक दिया है। हम इन बेहद शक्तिशाली बमों के इस्‍तेमाल पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं। इसके इस्‍तेमाल का शहरी इलाकों में भयानक असर पड़ता है। हमने अभी इस बारे में कोई फैसला नहीं किया है कि आने वाले समय में कैसे हथियारों की श‍िपमेंट को लेकर आगे बढ़ना है।'

अमेरिकी सूत्रों का कहना है कि इन बमों के शिपमेंट को कम से कम दो सप्‍ताह के लिए टाल दिया गया है। इसमें बोइंग कंपनी का बनाया हुआ जॉइंट डायरेक्‍ट अटैक बम और स्‍माल डायामीटर बम भी शामिल है। अमेरिका ने इन बमों की आपूर्ति को ऐसे समय पर टाली है जब बाइडन सार्वजनिक रूप से इजरायल पर दबाव डाल रहे हैं कि वह राफा पर अभियान को बंद करे।व्हाइट हाउस की ओर से आपत्ति दर्ज कराए जाने के बावजूद इजराइली सरकार रफह पर आक्रमण की तैयारी करती रही है। इसी के बाद अप्रैल में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने इजराइल को भविष्य में सैन्य सहायता भेजने की समीक्षा शुरू कर दी थी।

हाल के हफ्तों में इजराइल की राफा पर आक्रमण की धमकी के बाद से ही अमेरिका ने सार्वजनिक और निजी तौर पर इस तरह के ऑपरेशन का विरोध किया है। अमेरिका शुरुआत से कहता आया है कि राफा में किसी भी ऑपरेशन से पहले आम नागरिकों की सुरक्षा के लिए एक खास प्लान की जरूरत है। बताया जा रहा है कि करीब 17 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनी राफा में हैं, इनमें से करीब 14 लाख वो लोग हैं जो उत्तरी गाजा से जान बचाने के लिए राफा आए हैं।

बता दें कि आतंकी संगठन हमास की ओर से पिछले साल सात अक्टूबर को इजराइल पर हमला किया गया था। इसके जवाब में इजराइल ने गाजा पट्टी पर आक्रमण शुरू कर दिया था।हमास से जंग के बीच अमेरिका ने इजराइल को भारी मात्रा में सैन्य सहायता मुहैया कराई है। लेकिन अब गोला बारूद की खेप को रोकने से इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन के बीच बढ़ता गतिरोध और खुलकर सामने आया गया है।

यूएन में आमने-सामने आए अमेरिका-रूस, अंतरिक्ष में परमाणु हथियारों की तैनाती का मुद्दा*
#issue_of_nuclear_weapons_in_space_us_russia_clash_in_un पूरी दुनिया पहले से ही दो युद्धों से प्रभावित है, एक तरफ रूस-यूक्रेन के बीज संघर्ष जारी है, तो वहीं इजराइल और हमास के बीच जंग जारी है। इस बीच दुनिया इन दिनों मध्‍यपूर्व में सैन्‍य टकराव के युद्ध में तब्‍दील होने की आशंका से जूझ रहा है। पिछले दिनों ईरान ने इजरायल पर ड्रोन और मिसाइल से हमला कर दिया था. इसके बाद इजरायल ने भी ईरान पर पलटवार करने का दावा किया था। आशंका जताई जा रही है कि इन दोनों देशों की बीच कभी भी युद्ध शुरू हो सकता है। इस बीच रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में बाहरी अंतरिक्ष संधि के प्रस्ताव को वीटो लगाकर रोक दिया। यह मसौदा प्रस्ताव जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका ने पेश किया था। इस मसौदे का उद्देश्य बाहरी अंतरिक्ष को हथियारों से मुक्त रखना था। मसौदे के समर्थन में 13 वोट पड़े, एक सदस्य - चीन ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया और सुरक्षा परिषद एक स्थाई सदस्य के रूप में, रूस ने वीटो किया। पिछले दिनों मीडिया रिपोर्ट में रूस की ओर से पृथ्‍वी की कक्षा में परमाणु हथियार तैनात करने की योजना बनाने की बात सामने आई थी। इस खतरे का खुलासा अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की इंटेलिजेंस कमेटी के रिपब्लिकन अध्यक्ष सीनेटर माइक टर्नर ने किया था। उन्होंने इसे अमेरिका के लिए एक गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा बताया था। जिसके बाद अमेरिका ने अंतरिक्ष में रूस के परमाणु हथियार को लेकर चेतावनी दी थी। अमेरिका ने बतााय कि रूस अंतरिक्ष में परमाणु हथियार तैनात करने की तैयारी में है। इसके बाद अमेरिका ने संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में इसे प्रतिबंधित करने का प्रस्‍ताव लाया। रूस ने इस प्रस्‍ताव पर वीटो कर दिया। अब वॉशिंगटन ने मॉस्‍को के इस कदम की कड़ी आलोचना की है। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने एक बयान जारी कर कहा, ‘जैसा कि हमने पहले नोट किया है, संयुक्त राज्य अमेरिका का आकलन है कि रूस परमाणु उपकरण ले जाने वाला एक नया उपग्रह विकसित कर रहा है। हमने राष्ट्रपति (व्लादिमीर) पुतिन को सार्वजनिक रूप से यह कहते सुना है कि रूस का अंतरिक्ष में परमाणु हथियार तैनात करने का कोई इरादा नहीं है। यदि ऐसा होता तो न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में रूस द्वारा प्रस्ताव पर वीटो नहीं किया गया होता।’ सुलिवन ने आगे कहा, ‘रूस ने अमेरिका और जापान द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को वीटो कर दिया। यह प्रस्‍ताव बाहरी अंतरिक्ष में किसी भी सदस्‍य देश द्वारा परमाणु हथियार तैनात न करने को लेकर था। उन्होंने बताया कि प्रस्ताव में सभी सदस्य देशों से विशेष रूप से कक्षा में स्थापित करने के लिए डिज़ाइन किए गए परमाणु हथियार विकसित न करने का भी आह्वान किया गया था। सुलिवन ने कहा, किसी देश द्वारा कक्षा में परमाणु हथियार रखना न केवल बाहरी अंतरिक्ष संधि का उल्लंघन होगा, बल्कि महत्वपूर्ण संचार, वैज्ञानिक, मौसम विज्ञान, कृषि, वाणिज्यिक और राष्ट्रीय सुरक्षा सेवाओं को खतरे में डाल देगा। अंतरिक्ष में तैनात हथियार क्या होते हैं स्पेस वेपन अंतरिक्ष युद्ध में इस्तेमाल होने वाले हथियार हैं। इनमें वे हथियार शामिल हैं, जो अंतरिक्ष में सैटेलाइट या स्पेस स्टेशन पर हमला कर सकते हैं। इनमें मुख्य तौर पर एंटी सैटेलाइट हथियार शामिल हैं। कुछ हथियार ऐसे भी होते हैं, जो अंतरिक्ष से पृथ्वी पर हमला कर सकते हैं या अंतरिक्ष से गुजरने वाली मिसाइलों को निष्क्रिय कर सकते हैं। इन्हें ही स्पेस आधारित वेपन कहा जाता है। अंतरिक्ष के सैन्यीकरण मुख्य रूप से शीत युद्ध के दौरान शुरू हुआ था। इस दौरान मुख्य रूप से दो प्रतिस्पर्धी महाशक्तियों अमेरिका और रूस ने ऐसे हथियारों का विकास किया था। आज भी दुनिया के कुछ देशों में ऐसे हथियारों का डेवलपमेंट जारी है। प्रस्ताव के पास होने पर क्या होता? अगर यह मसौदा पारित होकर प्रस्ताव बन जाता तो इसमें दुनिया के सभी देशों से, विशेष रूप से अंतरिक्ष क्षमताओं वाले देशों से, बाहरी अन्तरिक्ष के शान्तिपूर्ण इस्तेमाल के लिए सक्रिय योगदान करने और बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की किसी भी दौड़ को रोकने का आहवान किया जाता। बता दें 1967 की आउटर स्पेस संधि हस्ताक्षरकर्ताओं - जिसमें रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका भी शामिल है - को 'पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में परमाणु हथियार या किसी अन्य प्रकार के सामूहिक विनाश के हथियार ले जाने वाली वस्तुओं' को रखने से रोकती है।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने दी परमाणु हमले की चेतावनी, बोले- देश की संप्रभुता और स्वतंत्रता को जरा खतरा हुआ तो.

#russia_is_ready_to_use_nuclear_weapons

 रूस और यूक्रेन की जंग जारी है। पश्चिमी देश लगातार यूक्रेन की मदद कर रहे हैं। पश्चिमी देशों की मदद से यूक्रेन लगातार रूस पर जवाबी कार्रवाई कर रहा है। इस बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बड़ी चेतावनी दे डाली है। व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि अगर रूस की संप्रभुता या स्वतंत्रता को कोई खतरा होता है, तो उनका देश परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए तैयार है।

बुधवार तड़के जारी रूसी राज्य टेलीविजन के साथ एक इंटरव्यू में बोलते हुए पुतिन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अमेरिका किसी भी ऐसे तनाव से बचेगा जो परमाणु युद्ध को जन्म दे सकता है, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि रूस की परमाणु ताकतें इसके लिए तैयार हैं। पुतिन ने कहा कि अमेरिका समझता है कि अगर उसने रूसी क्षेत्र या यूक्रेन पर अमेरिकी सैनिकों को तैनाती की तो रूस इसे हस्तक्षेप के रूप में लेगा। पुतिन ने आगे कहा, रूस-अमेरिका संबंधों और रणनीतिक संयम के क्षेत्र में वहां कई एक्सपर्ट हैं। ऐसे में मुझे नहीं लगता है कि परमाणु युद्ध का कोई माहौल बन रहा है, लेकिन हम निश्चित रूप से तैयार हैं। 

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने कभी यूक्रेन में युद्धक्षेत्र में परमाणु हथियारों का उपयोग करने पर विचार किया है, पुतिन ने जवाब दिया कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने यह विश्वास भी जताया कि मॉस्को यूक्रेन में अपने लक्ष्यों को हासिल करेगा और बातचीत के लिए दरवाजे खुले रखे, इस बात पर जोर दिया कि किसी भी सौदे के लिए पश्चिम से ठोस गारंटी की आवश्यकता होगी।

पुतिन की परमाणु युद्ध की चेतावनी ऐसे समय में आई है, जब पश्चिम ने यूक्रेन पर बातचीत के लिए एक और प्रस्ताव दिया है। अमेरिका का कहना है कि पुतिन यूक्रेन पर गंभीर बातचीत के लिए तैयार नहीं हैं। 

रूस और यूक्रेन के बीच पिछले दो साल से भीषण युद्ध जारी है। पुतिन ने फरवरी 2022 में यूक्रेन के खिलाफ बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान शुरू किया था। दो साल से जारी अभियान में रूस ने यूक्रेन के लगभग पांचवें हिस्से पर नियंत्रण स्थापित किया है और तेजी से बढ़त बनाए हुए है। रूस को भी इस युद्ध से गंभीर नुकसान पहुंचा है। इस पूरी लड़ाई में रूस के हजारों सैनिक मारे गए हैं। अगर पश्चिमी देशों के आंकड़ों को देखे तो इस युद्ध में रूस के 3 लाख से ज्यादा सैनिक मारे जा चुके हैं। इस कारण रूस की सेना में सैनिको कि कमी पड़ रही है। उधर, अमेरिका सहित पश्चिमी देशों से यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक मदद मिल रही है। इससे यूक्रेन और हमलावर हो गया है। वहीं, पश्चिम इस बात से जूझ रहा है कि रूस के खिलाफ यूक्रेन को समर्थन कैसे जारी रखा जाए।